Friday, December 23, 2011

अपनी भीगी हुई पलकों पे सजा लो मुझको / नक़्श लायलपुरी

अपनी भीगी हुई पलकों पे सजा लो मुझको
रिश्ताए-दर्द समझकर ही निभा लो मुझको

चूम लेते हो जिसे देख के तुम आईना
अपने चेहरे का वही अक्स बना लो मुझको

मैं हूँ महबूब अंधेरों का मुझे हैरत है
कैसे पहचान लिया तुमने उजालो मुझको

छाँओं भी दूँगा, दवाओं के भी काम आऊँगा
नीम का पौदा हूँ, आँगन में लगा लो मुझको

दोस्तों शीशे का सामान समझकर बरसों
तुमने बरता है बहुत अब तो संभालो मुझको

गए सूरज की तरह लौट के आ जाऊँगा
तुमसे मैं रूठ गया हूँ तो मनालो मुझको

एक आईना हूँ ऐ 'नक़्श' मैं पत्थर तो नहीं
टूट जाऊँगा न इस तरह उछालो मुझको

अश्क आँखों में तो होंटों में फु़गाँ होती है / सुरेश चन्द्र शौक़

अश्क आँखों में तो होंटों में फ़ुगाँ होती है

ज़िन्दगी इश्क़ में जल—जल के धुआँ होती है


मय से बढ़ कर तो कोई चीज़ नहीं राहते—जाँ

कौन कहता है कि ये दुश्मने—जाँ होती है


चन्द लोगों को ही मिलती है मताए—ग़मे—इश्क़

सब की तक़दीर में ये बात कहाँ होती है


बात चुप रह के भी कह देते हैं कहने वाले

बाज़—औक़ात ख़मोशी भी ज़बाँ होती है


दिल की जो बात ज़बाँ पर नहीं आती ऐ ‘शौक़’

वो महब्बत में निगाहों से बयाँ होती है.


फ़ुगाँ=आह ; राहते—जाँ=सुखदायक ; मताए—ग़मे—इश्क़=इश्क़ में मिलने वाले ग़म की पूंजी; बाज़—औक़ात=कभी—कभी

Monday, December 19, 2011

Lessons in Life

Lessons in Life

1. Life isn't fair, but it's still good.

2. When in doubt, just take the next small step.

3. Life is too short to waste time hating anyone.

4. Don't take yourself so seriously. No one else does.

5. Pay off your credit cards every month.

6. You don't have to win every argument. Agree to disagree.

7. Cry with someone. It's more healing than crying alone.

8. It's okay to get angry with God. He can take it.

9. Save for retirement starting with your first paycheck.

10. When it comes to chocolate, resistance is futile.

11. Make peace with your past so it won't screw up the present.

12. It's okay to let your children see you cry.

13. Don't compare your life to others'. You have no idea what their journey is all about.

14. If a relationship has to be a secret, you shouldn't be in it.

15. Everything can change in the blink of an eye. But don't worry; God never blinks.

16. Life is too short for long pity parties. Get busy living, or get busy dying.

17. You can get through anything if you stay put in today.

18. A writer writes. If you want to be a writer, write.

19. It's never too late to have a happy childhood. But the second one is up to you and no one else.

20. When it comes to going after what you love in life, don't take no for an answer.

21. Burn the candles, use the nice sheets, wear the fancy lingerie. Don't save it for a special occasion. Today is special.

22. Over-prepare, then go with the flow.

23. Be eccentric now. Don't wait for old age to wear purple.

24. The most important sex organ is the brain.

25. No one is in charge of your happiness except you.

26. Frame every so-called disaster with these words: "In five years, will this matter?"

27. Always choose life.

28. Forgive everyone everything.

29. What other people think of you is none of your business.

30. Time heals almost everything. Give time time.

31. However good or bad a situation is, it will change.

32. Your job won't take care of you when you are sick. Your friends will. Stay in touch.

33. Believe in miracles.

34. God loves you because of who God is, not because of anything you did or didn't do.

35. Whatever doesn't kill you really does make you stronger.

36. Growing old beats the alternative -- dying young.

37. Your children get only one childhood. Make it memorable.

38. Read the Psalms. They cover every human emotion.

39. Get outside every day. Miracles are waiting everywhere.

40. If we all threw our problems in a pile and saw everyone else's, we'd grab ours back.

41. Don't audit life. Show up and make the most of it now.

42. Get rid of anything that isn't useful, beautiful or joyful.

43. All that truly matters in the end is that you loved.

44. Envy is a waste of time. You already have all you need.

45. The best is yet to come.

46. No matter how you feel, get up, dress up and show up.

47. Take a deep breath. It calms the mind.

48. If you don't ask, you don't get.

49. Yield.

50. Life isn't tied with a bow, but it's still a gift.


"A REAL FRIEND IS ONE WHO WALKS IN WHEN
THE REST OF THE WORLD WALKS OUT

Sunday, December 18, 2011

Yesterday is history. Tomorrow is a mystery. Today is a gift. That's why it's called the present.


Remember the past, plan for the future, but live for today, because yesterday is gone and tomorrow may never come.


Being sad with the right people is better than being happy with the wrong ones.



Happiness needs sadness.

Success needs failure.
Benevolence needs evil.
Love needs hatred.
Victory needs defeat.
Pleasure needs pain.

You must experience and accept the extremes. Because if the contrast is lost, you lose appreciation; and when you lose appreciation, you lose the value of everything.


*17 most important things to remember in life*


1. Never give up on anybody;miracles happen everyday.

2.Be brave even if your not, pretend to be. No one can tell the difference.

3. Think big thoughts, relish small pleasures.

4. Learn to listen. Oppurtunity sometimes knocks very softly.

5. Never deprive someone of hope, it might be all they have.

6. Strive for excellence, not perfection.

7. Don't waste time greiving over past mistakes. Learn from them and move on.

8. When someone hugs you let them be the first to let go.

9. Never cut what can be untied.

10. Don't expect life to be fair.

11. Remember:Success comes to the one that acts first.

12. Never waste an oppurtunity to tell someone you love them.

13. Remember that nobody makes it alone. Have a greatful heart and be quick to acknowledge those who help you.

14. Never underestimate the power of a kind word or deed.

15. Laugh alot.A good sense of humor cures almost all of life's ills.

16. Don't miss the magic of the moment by focusing on whats to come.

17. Watch for big problems. They disguise big oppurtunities.


Never tell your problems to anyone...20% don't care and the other 80% are glad you have them.


When life gives you a hundred reasons to cry, show life that you have a thousand reasons to smile.


"When one door closes, another opens; but we often look so long and so regretfully upon the closed door that we do not see the one that has opened for us."

कौन याद आया ये महकारें कहाँ से आ गईं / ज़फ़र गोरखपुरी

कौन याद आया ये महकारें कहाँ से आ गईं
दश्त में ख़ुशबू की बौछारें कहाँ से आ गईं

कैसी शब है एक इक करवट पे कट जाता है जिस्म
मेरे बिस्तर में ये तलवारें कहाँ से आ गईं

साथ है, मिलना अगर चाहूँ तो मिलता भी नहीं
एक घर में इतनी दीवारें कहाँ से आ गईं

शायद अब तक मुझमें कोई घोंसला आबाद है
घर में ये चिड़ियों की चहकारें कहाँ से आ गईं

ख्वाब शायद फिर हुआ आंखों में कोई संगसार[1]
ज़ेरे-मिज़गां [2] ख़ून की धारें कहाँ से आ गईं

रख दिया किसने मेरे शाने पे अपना गर्म हाथ
मुझ शिकस्ता-पा [3] में रफ्त़ारें कहाँ से आ गईं

शब्दार्थ:

  1. पत्थर मारकर मार डालना
  2. पलकों के नीचे
  3. हारा हुआ

इरादा हो अटल तो मोजजा़ ऐसा भी होता है / ज़फ़र गोरखपुरी

इरादा हो अटल तो मोजज़ा[1] ऐसा भी होता है
दिए को ज़िंदा रखती है हव़ा, ऐसा भी होता है

उदासी गीत गाती है मज़े लेती है वीरानी
हमारे घर में साहब रतजगा ऐसा भी होता है

अजब है रब्त की दुनिया ख़बर के दायरे में है
नहीं मिलता कभी अपना पता ऐसा भी होता है

किसी मासूम बच्चे के तबस्सुम[2] में उतर जाओ
तो शायद ये समझ पाओ, ख़ुदा ऐसा भी होता है

ज़बां पर आ गए छाले मगर ये तो खुला हम पर
बहुत मीठे फलों का ज़ायक़ा ऐसा भी होता है

तुम्हारे ही तसव्वुर[3] की किसी सरशार मंज़िल में
तुम्हारा साथ लगता है बुरा, ऐसा भी होता है

शब्दार्थ:

  1. चमत्कार
  2. मुस्कुराहट
  3. कल्पना

हमने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर / जाँ निसार अख़्तर

हमने काटी हैं तिरी याद में रातें अक्सर
दिल से गुज़री हैं सितारों की बरातें अक्सर

और तो कौन है जो मुझको तसल्ली देता
हाथ रख देती हैं दिल पर तिरी बातें अक्सर

हुस्न शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-अलम है शायद
ग़मज़दा लगती हैं क्यों चाँदनी रातें अक्सर

हाल कहना है किसी से तो मुख़ातिब हो कोई
कितनी दिलचस्प, हुआ करती हैं बातें अक्सर

इश्क़ रहज़न न सही, इश्क़ के हाथों फिर भी
हमने लुटती हुई देखी हैं बरातें अक्सर

हम से इक बार भी जीता है न जीतेगा कोई
वो तो हम जान के खा लेते हैं मातें अक्सर

उनसे पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुमने
जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर

हमने उन तुन्द हवाओं में जलाये हैं चिराग़
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर

समन्दर में उतर जाते हैं / कमलेश भट्ट 'कमल'

समन्दर में उतर जाते हैं जो हैं तैरने वाले

किनारे पर भी डरते हैं तमाशा देखने वाले


जो खुद को बेच देते हैं बहुत अच्छे हैं वे फिर भी

सियासत में कई हैं मुल्क तक को वेचने वाले


गये थे गाँव से लेकर कई चाहत कई सपने

कई फिक्रें लिये लौटे शहर से लौटने वाले


बुराई सोचना है काम काले दिल के लोगों का

भलाई सोचते ही हैं भलाई सोचने वाले


यकीनन झूठ की बस्ती यहाँ आबाद है लेकिन

बहुत से लोग जिन्दा हैं अभी सच बोलने वाले

मेरे हम-नफ़स, मेरे हम-नवा, मुझे दोस्त बनके दगा़ न दे / शकील बँदायूनी

मेरे हम-नफ़स, मेरे हम-नवा, मुझे दोस्त बनके दग़ा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँवलब, मुझे ज़िन्दगी की दुआ न दे

मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी, उसी रौशनी से है ज़िन्दगी
मुझे डर है अये मेरे चारागर, ये चराग़ तू ही बुझा न दे

मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर
ये तेरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे

मेरा अज़्म इतना बलंद है के पराये शोलों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे

वो उठे हैं लेके होम-ओ-सुबू, अरे ओ 'शकील' कहाँ है तू
तेरा जाम लेने को बज़्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे

किसलिए वो याद फिर आने लगी / अजी़ज़ आजा़द...............

किसलिए वो याद फिर आने लगी
ज़िन्दगी की शाम गहराने लगी

आज इस सूखे शजर पर किसलिए
फिर घटा आ-आ के लहराने लगी

फिर ये सावन सर पटकता है मगर
चाहतों की शाख मुर्झाने लगी

थरथराते एक पत्ते की तरह
सारी दुनिया अब नज़र आने लगी

क्या हुआ जो आज बहलाने मुझे
ज़िन्दगी क्यूँ प्यार बरसाने लगी

अब कोई ‘आज़ाद’ शिकवा किसलिए
सो ही जाएँ नींद जब आने लगी

तुम ज़रा प्यार की राहों से गुज़र कर देखो / अजी़ज़ आजा़द.....

तुम ज़रा प्यार की राहों से गुज़र कर देखो
अपने ज़ीनों से सड़क पर भी उतर कर देखो

धूप सूरज की भी लगती है दुआओं की तरह
अपने मुर्दार ज़मीरों से उबर कर देखो

तुम हो ख़ंजर भी तो सीने में समा लेंगे तुम्हें
प’ ज़रा प्यार से बाँहों में तो भर कर देखो

मेरी हालत से तो ग़ुरबत का गुमाँ हो शायद
दिल की गहराई में थोड़ा-सा उतर कर देखो

मेरा दावा है कि सब ज़हर उतर जायेगा
तुम मेरे शहर में दो दिन तो ठहर कर देखो

इसकी मिट्टी में मुहब्बत की महक आती है
चाँदनी रात में दो पल तो पसर कर देखो

कौन कहता है कि तुम प्यार के क़ाबिल ही नहीं
अपने अन्दर से भी थोड़ा-सा सँवर कर देखो

अब गए वक़्त के़ हर ग़म को भुलाया जाए / अजी़ज़ आजा़द.........

अब गए वक़्त क़े हर ग़म को भुलाया जाए
प्यार ही प्यार को परवान चढ़ाया जाए

आग नफ़रत की चमन को ही जला दे न कहीं
पहले इस आग को मिल-जुल के बुझाया जाए

सरहदें हैं कोई क़िस्मत की लकीरें तो नहीं
अब इन्हें तोड़ के बिछड़ों को मिलाया जाए

आतशी झील में खिल जाएँ मुहब्बत के कँवल
अब कोई ऐसा ही माहौल बनाया जाए

सिर्फ़ ज़ुल्मों की शिकायत ही करोगे कब तक
पहले मज़लूम की अज़मत को बचाया जाए

साज़िशें फिरती हैं कितने मुखौटे पहने
उनकी चालों से सदा ख़ुद को बचाया जाए

कितने ही दहरो-हरम हमने बना डाले ‘अज़ीज़’
पहले इनसान को इनसान बनाया जाए

अपनी नज़र से कोई मुझे जगमगा गया / अजी़ज़आजा़द,,,,,

अपनी नज़र से कोई मुझे जगमगा गया
महफ़िल में आज सब की निगाहों में छा गया

कल तक तो इस हुजूम में मेरा कोई न था
लो आज हर कोई मुझे अपना बना गया

आता नहीं था कोई परिन्दा भी आस-पास
अब चाँद ख़ुद उतर के मेरी छत पे आ गया

जो दर्द मेरी जान पे रहता था रात-दिन
वो दर्द मेरी ज़िन्दगी के काम आ गया

हैरान हो के लोग मुझे पूछते हैं आज
‘आज़ाद’ तुमको कौन ये जीना सिखा गया

Tuesday, December 13, 2011

उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से / कुँअर बेचैन

जितनी दूर नयन से सपना
जितनी दूर अधर से हँसना
बिछुए जितनी दूर कुँआरे पाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

हर पुरवा का झोंका तेरा घुँघरू
हर बादल की रिमझिम तेरी भावना
हर सावन की बूंद तुम्हारी ही व्यथा
हर कोयल की कूक तुम्हारी कल्पना

जितनी दूर ख़ुशी हर ग़म से
जितनी दूर साज सरगम से
जितनी दूर पात पतझर का छाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

हर पत्ती में तेरा हरियाला बदन
हर कलिका के मन में तेरी लालिमा
हर डाली में तेरे तन की झाइयाँ
हर मंदिर में तेरी ही आराधना

जितनी दूर प्यास पनघट से
जितनी दूर रूप घूंघट से
गागर जितनी दूर लाज की बाँह से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

कैसे हो तुम, क्या हो, कैसे मैं कहूँ
तुमसे दूर अपरिचित फिर भी प्रीत है
है इतना मालूम की तुम हर वस्तु में
रहते जैसे मानस् में संगीत है

जितनी दूर लहर हर तट से
जितनी दूर शोख़ियाँ लट से
जितनी दूर किनारा टूटी नाव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

इसी चमन में ही हमारा भी इक ज़माना था / जिगर मुरादाबादी

इसी चमन में ही हमारा भी इक ज़माना था
यहीं कहीं कोई सादा सा आशियाना था

नसीब अब तो नहीं शाख़ भी नशेमन की
लदा हुआ कभी फूलों से आशियाना था

तेरी क़सम अरे ओ जल्द रूठनेवाले
गुरूर-ए-इश्क़ न था नाज़-ए-आशिक़ाना था

तुम्हीं गुज़र गये दामन बचाकर वर्ना यहाँ
वही शबाब वही दिल वही ज़माना था

आँखों में बस के दिल में समा कर चले गये / जिगर मुरादाबादी

आँखों में बस के दिल में समा कर चले गये
ख़्वाबिदा ज़िन्दगी थी जगा कर चले गये

चेहरे तक आस्तीन वो लाकर चले गये
क्या राज़ था कि जिस को छिपाकर चले गये

रग-रग में इस तरह वो समा कर चले गये
जैसे मुझ ही को मुझसे चुराकर चले गये

आये थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
इक आग सी वो और लगा कर चले गये

लब थरथरा के रह गये लेकिन वो ऐ "ज़िगर"
जाते हुये निगाह मिलाकर चले गये

यह धरती कितना देती है / सुमित्रानंदन पंत

मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे,
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी
और फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूँगा!
पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा,
बन्ध्या मिट्टी नें न एक भी पैसा उगला!-
सपने जाने कहाँ मिटे, कब धूल हो गये!
मैं हताश हो बाट जोहता रहा दिनों तक
बाल-कल्पना के अपलर पाँवडडे बिछाकर
मैं अबोध था, मैंने गलत बीज बोये थे,
ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था!

अर्द्धशती हहराती निकल गयी है तबसे!
कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने,
ग्रीष्म तपे, वर्षा झूली, शरदें मुसकाई;
सी-सी कर हेमन्त कँपे, तरु झरे, खिले वन!
औ\' जब फिर से गाढ़ी, ऊदी लालसा लिये
गहरे, कजरारे बादल बरसे धरती पर,
मैंने कौतूहल-वश आँगन के कोने की
गीली तह यों ही उँगली से सहलाकर
बीज सेम के दबा दिये मिट्टी के नीचे-
भू के अंचल में मणि-माणिक बाँध दिये हो!
मैं फिर भूल गया इस छोटी-सी घटना को,
और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन!
किन्तु, एक दिन जब मैं सन्ध्या को आँगन में
टहल रहा था,- तब सहसा, मैने देखा
उसे हर्ष-विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से!

देखा-आँगन के कोने में कई नवागत
छोटे-छोटे छाता ताने खड़े हुए हैं!
छांता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की,
या हथेलियाँ खोले थे वे नन्हीं प्यारी-
जो भी हो, वे हरे-हरे उल्लास से भरे
पंख मारकर उड़ने को उत्सुक लगते थे-
डिम्ब तोड़कर निकले चिडियों के बच्चों से!
निर्निमेष, क्षण भर, मैं उनको रहा देखता-
सहसा मुझे स्मरण हो आया,-कुछ दिन पहिले
बीज सेम के मैने रोपे थे आँगन में,
और उन्हीं से बौने पौधो की यह पलटन
मेरी आँखों के सम्मुख अब खड़ी गर्व से,
नन्हें नाटे पैर पटक, बढती जाती है!

तब से उनको रहा देखता धीरे-धीरे
अनगिनती पत्तों से लद, भर गयी झाड़ियाँ,
हरे-भरे टंग गये कई मखमली चँदोवे!
बेलें फैल गयी बल खा, आँगन में लहरा,
और सहारा लेकर बाड़े की टट्टी का
हरे-हरे सौ झरने फूट पड़े ऊपर को,-
मैं अवाक् रह गया-वंश कैसे बढ़ता है!
छोटे तारों-से छितरे, फूलों के छीटे
झागों-से लिपटे लहरों श्यामल लतरों पर
सुन्दर लगते थे, मावस के हँसमुख नभ-से,
चोटी के मोती-से, आँचल के बूटों-से!

ओह, समय पर उनमें कितनी फलियाँ फूटी!
कितनी सारी फलियाँ, कितनी प्यारी फलियाँ,-
पतली चौड़ी फलियाँ! उफ उनकी क्या गिनती!
लम्बी-लम्बी अँगुलियों - सी नन्हीं-नन्हीं
तलवारों-सी पन्ने के प्यारे हारों-सी,
झूठ न समझे चन्द्र कलाओं-सी नित बढ़ती,
सच्चे मोती की लड़ियों-सी, ढेर-ढेर खिल
झुण्ड-झुण्ड झिलमिलकर कचपचिया तारों-सी!
आः इतनी फलियाँ टूटी, जाड़ो भर खाई,
सुबह शाम वे घर-घर पकीं, पड़ोस पास के
जाने-अनजाने सब लोगों में बँटबाई
बंधु-बांधवों, मित्रों, अभ्यागत, मँगतों ने
जी भर-भर दिन-रात महुल्ले भर ने खाई !-
कितनी सारी फलियाँ, कितनी प्यारी फलियाँ!

यह धरती कितना देती है! धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रों को!
नही समझ पाया था मैं उसके महत्व को,-
बचपन में छिः स्वार्थ लोभ वश पैसे बोकर!
रत्न प्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ।
इसमें सच्ची समता के दाने बोने है;
इसमें जन की क्षमता का दाने बोने है,
इसमें मानव-ममता के दाने बोने है,-
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसलें
मानवता की, - जीवन श्रम से हँसे दिशाएँ-
हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे।

यह धरती कितना देती है / सुमित्रानंदन पंत

मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे,
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी
और फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूँगा!
पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा,
बन्ध्या मिट्टी नें न एक भी पैसा उगला!-
सपने जाने कहाँ मिटे, कब धूल हो गये!
मैं हताश हो बाट जोहता रहा दिनों तक
बाल-कल्पना के अपलर पाँवडडे बिछाकर
मैं अबोध था, मैंने गलत बीज बोये थे,
ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था!

अर्द्धशती हहराती निकल गयी है तबसे!
कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने,
ग्रीष्म तपे, वर्षा झूली, शरदें मुसकाई;
सी-सी कर हेमन्त कँपे, तरु झरे, खिले वन!
औ\' जब फिर से गाढ़ी, ऊदी लालसा लिये
गहरे, कजरारे बादल बरसे धरती पर,
मैंने कौतूहल-वश आँगन के कोने की
गीली तह यों ही उँगली से सहलाकर
बीज सेम के दबा दिये मिट्टी के नीचे-
भू के अंचल में मणि-माणिक बाँध दिये हो!
मैं फिर भूल गया इस छोटी-सी घटना को,
और बात भी क्या थी याद जिसे रखता मन!
किन्तु, एक दिन जब मैं सन्ध्या को आँगन में
टहल रहा था,- तब सहसा, मैने देखा
उसे हर्ष-विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से!

देखा-आँगन के कोने में कई नवागत
छोटे-छोटे छाता ताने खड़े हुए हैं!
छांता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की,
या हथेलियाँ खोले थे वे नन्हीं प्यारी-
जो भी हो, वे हरे-हरे उल्लास से भरे
पंख मारकर उड़ने को उत्सुक लगते थे-
डिम्ब तोड़कर निकले चिडियों के बच्चों से!
निर्निमेष, क्षण भर, मैं उनको रहा देखता-
सहसा मुझे स्मरण हो आया,-कुछ दिन पहिले
बीज सेम के मैने रोपे थे आँगन में,
और उन्हीं से बौने पौधो की यह पलटन
मेरी आँखों के सम्मुख अब खड़ी गर्व से,
नन्हें नाटे पैर पटक, बढती जाती है!

तब से उनको रहा देखता धीरे-धीरे
अनगिनती पत्तों से लद, भर गयी झाड़ियाँ,
हरे-भरे टंग गये कई मखमली चँदोवे!
बेलें फैल गयी बल खा, आँगन में लहरा,
और सहारा लेकर बाड़े की टट्टी का
हरे-हरे सौ झरने फूट पड़े ऊपर को,-
मैं अवाक् रह गया-वंश कैसे बढ़ता है!
छोटे तारों-से छितरे, फूलों के छीटे
झागों-से लिपटे लहरों श्यामल लतरों पर
सुन्दर लगते थे, मावस के हँसमुख नभ-से,
चोटी के मोती-से, आँचल के बूटों-से!

ओह, समय पर उनमें कितनी फलियाँ फूटी!
कितनी सारी फलियाँ, कितनी प्यारी फलियाँ,-
पतली चौड़ी फलियाँ! उफ उनकी क्या गिनती!
लम्बी-लम्बी अँगुलियों - सी नन्हीं-नन्हीं
तलवारों-सी पन्ने के प्यारे हारों-सी,
झूठ न समझे चन्द्र कलाओं-सी नित बढ़ती,
सच्चे मोती की लड़ियों-सी, ढेर-ढेर खिल
झुण्ड-झुण्ड झिलमिलकर कचपचिया तारों-सी!
आः इतनी फलियाँ टूटी, जाड़ो भर खाई,
सुबह शाम वे घर-घर पकीं, पड़ोस पास के
जाने-अनजाने सब लोगों में बँटबाई
बंधु-बांधवों, मित्रों, अभ्यागत, मँगतों ने
जी भर-भर दिन-रात महुल्ले भर ने खाई !-
कितनी सारी फलियाँ, कितनी प्यारी फलियाँ!

यह धरती कितना देती है! धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रों को!
नही समझ पाया था मैं उसके महत्व को,-
बचपन में छिः स्वार्थ लोभ वश पैसे बोकर!
रत्न प्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ।
इसमें सच्ची समता के दाने बोने है;
इसमें जन की क्षमता का दाने बोने है,
इसमें मानव-ममता के दाने बोने है,-
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसलें
मानवता की, - जीवन श्रम से हँसे दिशाएँ-
हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे।

Thursday, August 4, 2011

आवाज़ दो हम एक हैं / जाँ निसार अख़्तर......बहुत खूबसूरत सन्देश है --अर्चना

एक है अपना जहाँ, एक है अपना वतन
अपने सभी सुख एक हैं, अपने सभी ग़म एक हैं
आवाज़ दो हम एक हैं.

ये वक़्त खोने का नहीं, ये वक़्त सोने का नहीं
जागो वतन खतरे में है, सारा चमन खतरे में है
फूलों के चेहरे ज़र्द हैं, ज़ुल्फ़ें फ़ज़ा की गर्द हैं
उमड़ा हुआ तूफ़ान है, नरगे में हिन्दोस्तान है
दुश्मन से नफ़रत फ़र्ज़ है, घर की हिफ़ाज़त फ़र्ज़ है
बेदार हो, बेदार हो, आमादा-ए-पैकार हो (पैकार=जंग, युद्ध)
आवाज़ दो हम एक हैं.

ये है हिमालय की ज़मीं, ताजो-अजंता की ज़मीं
संगम हमारी आन है, चित्तौड़ अपनी शान है
गुलमर्ग का महका चमन, जमना का तट गोकुल का मन
गंगा के धारे अपने हैं, ये सब हमारे अपने हैं
कह दो कोई दुश्मन नज़र उट्ठे न भूले से इधर
कह दो कि हम बेदार हैं, कह दो कि हम तैयार हैं
आवाज़ दो हम एक हैं

उट्ठो जवानाने वतन, बांधे हुए सर से क़फ़न
उट्ठो दकन की ओर से, गंगो-जमन की ओर से
पंजाब के दिल से उठो, सतलज के साहिल से उठो
महाराष्ट्र की ख़ाक से, देहली की अर्ज़े-पाक* से (*पवित्र भूमि)
बंगाल से, गुजरात से, कश्मीर के बागात से
नेफ़ा से, राजस्थान से, कुल ख़ाके-हिन्दोस्तान से
आवाज़ दो हम एक हैं!
आवाज़ दो हम एक हैं!!
आवाज़ दो हम एक हैं!!!

Wednesday, August 3, 2011

पुष्प की अभिलाषा / माखनलाल चतुर्वेदी,.(यह मेरी प्रिय कविता है...अर्चना

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर, हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक।

Sunday, May 22, 2011

बात कड़वी ही सही, बोली तो मीठी हो

एक पंडित ने पहलवान की कुंडली देखी। उसे बताया कि तुम्हारे पास धन, दौलत और ताकत खूब रहेगी। परिवार का सुख भी रहेगा लेकिन तुम्हारे सारे परिजन तुम्हारे रहते ही मर जाएंगे। परिवार में तुम अकेले ही रह जाओगे। पहलवान डर गया, आंखों में आंसू आ गए। पंडित पर गुस्से में तमतमाया और अच्छे से धुनाई कर दी।

तुझसे मैंने भविष्य पूछा था, तू मेरे परिवार के मिटने की बात कर रहा है।

पंडितजी जान छुड़ाकर भागे। वैद्य के पास पहुंचे। मरहम-पट्टी करवाई। कभी किसी पहलवान की कुंडली न देखने की कसम खा ली। दक्षिणा तो मिली नहीं, उल्टे जान के लाले पड़ गए।

उन पंडितजी के घर के पास ही एक दूसरे पंडित आचार्य भी रहते थे। पिटाई की बात सुनी तो वे उनका हालचाल जानने पहुंचे। आचार्य जी ने पूछा कैसे हुआ यह सब।

पंडित बोले अरे उसकी कुंडली ही ऐसी थी मैं क्या करता? उसके सारे रिश्तेदारों की मौत उसके सामने ही हो जाएगी। ये तय है। उससे झूठ कैसे बोलता।

आचार्य जी ने समझाया, ये बात तुम उसे किसी दूसरे तरीके से बता सकते थे। सीधे-सीधे ऐसा बोलने की क्या जरूरत थी।

पंडित जी बोले, तो कैसे बोलता।

आचार्य जी बोले मैं उसके पास जाता हूं, तुम्हारी भी दक्षिणा वसूल करके लाऊंगा उससे।

पंडितजी बोले, न-न उसके पास मत जाना बहुत जालिम है। मैं तो जवान था सो इतनी मार सह गया। आप नहीं सह पाएंगे, आपकी तो उम्र भी ज्यादा है।

आचार्यजी बोले तुम मेरी फिक्र मत करों मैं संभाल लूंगा।

अगले दिन आचार्यजी पहलवान के घर पहुंच गए। पहलवान पहले ही पंडित से चिढ़ा हुआ था, दूसरे पंडित को देखकर नथूने फूला कर बोला, देखों आचार्यजी पहले ही एक पंडित ने मेरा मूड बहुत खराब कर दिया है। आपने भी ऐसी-वैसी बात की तो खैर नहीं है।

आचार्य जी ने कहा आप निश्चिंत रहिए, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं सब सही-सही बताऊंगा।

आचार्यजी ने पहलवान की कुंडली बनाई और देखने लगे। पहले पंडित ने पहलवान की कुंडली के बारे में जो बताया था, सब वैसा ही था।

आचार्यजी ने पहलवान को सब वैसा ही बता दिया। पहलवान खुश हो गया और दोगुनी दक्षिणा देकर आचार्य ्रजी को विदा किया। आचार्यजी ने पंडित के पास आकर उसके हिस्से की दक्षिणा भी दी तो पंडितजी की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं।

आपने उसे सब बता दिया, पंडित ने आश्चर्यचकित होकर पूछा। उसके परिवार वालों की मौत के बारें में भी।

आचार्यजी ने कहा हां सब बता दिया। वो खुश हो गया।

क्या बताया आपने?

मैंने उससे कहा कि तुम बहुत किस्मत वाले हो। तुम्हारे पूरे खानदान में तुम्हारे पास ही सबसे ज्यादा दौलत, शोहरत और ताकत होगी, यहां तक कि तुम्हारे पूरे खानदान में उम्र भी सबसे ज्यादा तुम्हारी ही है।

वो खुश हो गया और मुझे दोगुनी दक्षिणा दे दी। जबकि इसका मतलब तो यही था कि उसके सारे रिश्तेदार उसके सामने ही मर जाएंगे।

पंडित को अपनी गलती का एहसास हो गया। सभी जानते हैं कि सच कड़वा होता है लेकिन उसे कड़वे तरीके से ही बोला जाए, ये जरूरी नहीं है। कड़वी से कड़वी बात भी बोलते समय याद रखें कि आपके बोलने का अंदाज ऐसा हो कि सुनने वाले को बुरा नहीं लगे।

भगवान को ऐसा व्यक्ति ही सर्वाधिक पसंद है

हर व्यक्ति का कोई न कोई सपना अवश्य होता है। अपने सपने को हकीकत में बदलने या मंजिल को हांसिल करने के लिये इंसान हर कोशिश करता है। इंसान ऐसी कोई भी कसर या कमी छोडऩा नहीं चाहता जो आगे चलकर उसकी सफलता में रोड़ा बन जाए। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि संयोग या दुर्भाग्य से एक के बाद एक कई रुकावटें या बाधाएं आती ही जाती हैं। यहां तक कि अच्छे काम को करने में तो और भी ज्यादा रुकावटे आती हैं। लेकिन इंसान यदि सच्चा है और भगवान की नजरों में योग्य है तो उस इंसान की सारी बाधाएं या कठिनाइयां अपने आप ही दूर हो जाती हैं। आइये चलते हैं ऐसी ही एक कहानी में जो हमें बहुत कीमती सबक सिखाती है........

एक बार एक व्यक्ति भगवान को देने के लिये तलवार और राजमुकुट का उपहार लेकर गया। वह भगवान से एकांत में मिलना चाहता था। लेकिन द्वारपालों ने उसे बाहर ही रोक दिया और मिलने का कारण पूछा। उस व्यक्ति ने तलवार और मुकुट का उपहार देने की बात बताई। लेकिन द्वरापालों ने यह कहकर उसे अंदर जाने से रोक दिया कि भगवान को तुम्हारे इन उपहारों की कोई आवश्यकता ही नहीं है। भगवान का कोई शत्रु नहीं है, इसलिये उन्हें इस तलवार से क्या काम? तथा मुकुट तो धरती के छोटे-छोटे राजा लोग लगाते हैं, भगवान तो इस पूरे ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं, मालिक हैं उन्हें मुकुट से क्या लेना-देना। यह चर्चा चल ही रही थी कि पास में ही एक बूढ़ा आदमी अचानक ठोकर खाकर गिर गया। उसे देखते ही वह व्यक्ति बात करना बंद करके तुरंत उस बूढ़े को सहारा देकर उठाने के लिये दोड़ा। बूढ़े व्यक्ति की हालत देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसकी आवश्यक मदद करने के बाद जब वह लोटा तो उसने देखा कि रास्ता रोकने वाले द्वारपाल अब वहां से जा चुके थे। अब वह बगैर किसी रुकावट के सीधा भगवान से मिलने जा सकता था।

........शायद उस बूढ़े के रूप में भगवान उस व्यक्ति की परीक्षा ले रहा था। उस व्यक्ति के मन में ओरों के लिये दया और करुणा की भावना थी इसीलिये वह परीक्षा में उत्तीर्ण हो सका।

Saturday, May 21, 2011

किसी के विचारों को बदलना है तो उन्हें प्रेम करना सिखाएं...

दूसरों को अपने साथ जोड़ा जा सकता है। बल्कि जीवन का लंबा समय उनके साथ बिताया भी जा सकता है, लेकिन जब उनके विचारों को परिवर्तन करने का अवसर आता है तो या तो मतभेद हो जाते हैं या आप इसमें असफल हो जाएंगे। यह मामला केवल बाहरी दुनिया का नहीं है।

परिवार में यदि माता-पिता अपने कुल की परंपरानुसार अच्छे विचारों को बच्चों में भी उतारना चाहते हैं तो यही परेशानी आती है। बच्चे आपका कहना मान लेंगे, आपके अनुसार दिनचर्या भी कर लेंगे, लेकिन विचार बदलने को तैयार नहीं होते।

किसी का दृष्टिकोण बदलना है तो प्रेम को जीवन में उतारना होगा। दबाव में आप किसी की जीवनशैली बदल सकते हैं, चिंतनशैली नहीं बदल सकते। इसके लिए प्रेम की ही जरूरत पड़ेगी। अपने प्रेम को इतना विस्तार दिया जाए, बढ़ाया जाए कि फिर उसमें अपनेआप अहंकार गलने लगता है।

जैसे ही प्रेम में से अहंकार गया, भक्ति का प्रवेश शुरू हो जाता है। प्रेम जैस-जैसे ऊंचा उठेगा, भक्ति का रूप लेता जाएगा। इसलिए परिवारों में बच्चों को भक्ति करना सिखाएं। आप उन्हें जो भी बनाना चाहें जरूर बनाएं, पर भक्त वे बनें ऐसा अवश्य करें। भक्त देना जानता है, लेना नहीं जानता। जैसे प्रेम मांगने लग जाए तो वासना हो जाती है।

इसी तरह भक्ति यदि मांगने लग जाए तो मात्र कर्मकाण्ड बन जाएगी। भक्ति जितनी जागेगी, परमात्मा पर भरोसा उतना बढ़ेगा। इसीलिए भक्तों के पास जाकर लोग आसानी से अपने विचार बदल लेते हैं और सद्विचार यदि सुपात्र में उतर जाएं तो ऐसे लोग परिवार, समाज और राष्ट्र को हित ही पहुंचाएंगे।

Wednesday, May 11, 2011

जीवन में शांति लाए ये दमदार सूत्र Source: धर्म डेस्क. उज्जैन |

सुख और चैन को पाने की कवायद में जिंदगी भर हर व्यक्ति दिन-रात एक कर देता है। किंतु मानव स्वभाव यह भी होता है कि वह सुख-सुकून तो चाहता है, लेकिन खुद उन बातों को साथ लेकर जीता है, जो जीवन से सुख-चैन छिन लेते हैं। कई अवसरों पर हालात यह होते हैं कि वह दूसरों को भी सुकून से रहने के नुस्खें बताता हुआ देखा जाता है। लेकिन वही तरीके खुद अपनाने में चूक करता रहता है।

प्रश्र यह है कि आख़िर इंसान ऐसा क्या करे कि अशांत व बेचैन मन और जीवन में सुकून बना रहे? इसका उत्तर धर्मशास्त्रों में बताई गई कुछ बेहद सरल बातें हैं, जो व्यावहारिक रूप से कठिन और मात्र शिक्षाप्रद लगती है, किंतु इच्छाशक्ति इनको सरल बना देती हैं -

- किसी व्यक्ति के मन को किसी भी रूप से चोट न पहुंचाए।

- किसी को कटु या कठोर वाणी न बोले यानि शब्द बाण न छोड़ें।

- सबसे अहम बात सत्य या सच बोलने का हरसंभव प्रयास करें। यह व्यक्ति को शांत, संतुलित और निश्चिंत रखने का अचूक उपाय है।

- क्रोध यानि गुस्से पर काबू रखें। दूसरों के आप पर क्रोध करने पर भी शांत रहकर बात या व्यवहार करें।

- दूसरों की निंदा या बुराई करने या सुनने से बचें। अपनी निंदा होने पर उसमें से सकारात्मक बातें ग्रहण करें।

- सुख हो या दु:ख दोनों स्थितियों में समान भाव से रहें। ऐसा करना व्यर्थ की चिंता और बेचैनी को दूर रखेगा।

- खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझ अहं भाव से दूर रहें यानि किसी को कमतर साबित करने की व्यर्थ चेष्टा न करें।

- ऐसी अशुभ बातें न करें जो किसी अवसर विशेष पर दूसरों को गहरा दु:ख, चिंता और अवसाद से भर दे।

- मौन रहने का अभ्यास करें यानि गैर जरूरी बातों या प्रतिक्रिया में अपशब्दों के इस्तेमाल से बचें।

- सहनशील बने। इसके लिए पहले जरूरी है बदले की भावना का त्याग, जो तभी संभव है जब किसी के बुरा करने पर भी क्षमा भाव रख जाए या अभ्यास किया जाए।........


5 अनमोल बातें बनाए हर काम में कुशल और सफल.......

हम अक्सर शास्त्रों, साहित्य या व्यावहारिक बोलचाल में पण्डित शब्द पढ़ते, सुनते और बोलते भी है। सामान्यत: इस शब्द का अर्थ ब्राह्मण जाति के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह व्यावहारिक रूप से पवित्र आचरण, व्यवहार और विचारों की ओर संकेत करता है। किंतु धर्मशास्त्रों में ही पण्डित होने का मूल भाव कुशल चरित्र और व्यक्तित्व से भी जोड़ा गया है।


व्यावहारिक रूप से कुशल होने के अनेक पहलू हो सकते हैं। अक्सर शारीरिक या मानसिक या धनोपार्जन की कुशलता इंसान को पहचान देती है। सांसारिक नजरिए से तो कुशलता के पैमाने और भी हो सकते हैं, किंतु धर्मशास्त्र में लिखी कुछ बातों पर गौर करें तो इंसानी जीवन के व्यवहार, कर्म और विचार से जुडे पांच पैमाने ऐसे हैं, जिनको पूरा करने पर कोई भी इंसान पण्डित या कुशल कहलाता है। चाहे फिर वह किसी भी धर्म या जाति का हो।

डालते हैं एक नजर कुशलता या पण्डित होने से जुड़ी इन पांच बातों पर -

- विनम्रता से सज्जन को अपना बनाना।

- तप से देवकृपा पाना।

- सद्कर्मो या अच्छे व्यवहार से सभी को वशीभूत करना यानी अपना बना लेना।

- धन से जुड़ी जिम्मेदारियों को उठाकर मर्यादाओं के साथ स्त्री को सुरक्षा देना और उसका प्रेम और विश्वास पाना।

- मीठे से बालक को प्रसन्न करना।

ये पांच बातें इंसान के पूरे जीवन से जुड़े अच्छे कर्म, व्यवहार और सोच की ओर संकेत करती हैं। जिनको अपनाकर आप भी जीवन को सही दिशा दे सकते हैं।

Monday, March 21, 2011

शहद से बंद होगा बालों का झडऩा=


सामान्यत: सभी के यहां शहद आसानी से मिल जाता है। शहद के औषधीय गुण सभी जानते हैं। शहद की तासीर ठंडी होती है और यह कई बीमारियों को दूर करने में सक्षम है। शहद से बालों का झडऩा भी रोका जा सकता है।

आज छोटी उम्र से ही बालों के झडऩे की समस्या देखी जाती है। इस बीमारी से बचने के लिए शहद और दालचीनी कारगर उपाय है।

बाल झड़ते हैं तो गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाएं। नहाने से पहले इस पेस्ट को सिर पर लगा लें। 15 मिनट बाद बाल गरम पानी से सिर को धोएं। ऐसा करने पर कुछ ही दिनों बालों के झडऩे की समस्या दूर हो जाएगी।

दालचीनी और शहद के मिश्रण काफी कारगर रहता है। आयुर्वेद के अनुसार इनके मिश्रण से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। त्वचा और शरीर को चमकदार और स्वस्थ बनाए रखने के लिए इनका उपयोग करना चाहिए।,


दालचीनी से भगाएं मौसमी बीमारियां=


सभी लोगों मौसम परिवर्तन के समय छोटी-छोटी बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। मौसमी बीमारियां जैसे सर्दी-जुकाम, बुखार, खांसी आदि। इनसे बचने के लिए आयुर्वेद में दालचीनी का उपयोग बताया गया है।


यदि आप अत्यधिक कार्य की वजह से मानसिक तनाव झेल रहे हैं तो रात को सोते समय एक चुटकी दालचीनी पाउडर शहद के साथ लें, इससे सोचने की शक्ति भी बढ़ती है। कुछ ही दिनों तनाव दूर हो जाएगा।

यदि आपका गला बैठ गया है, तो दालचीनी का बारीक पाउडर एक गिलास पानी में उबालें और चुटकीभर कालीमिर्च व शहद के साथ लें।

प्रतिदिन रात को सोते समय दालचीनी का सेवन करें। इससे मौसमी बीमारियों को आपसे दूर रहेंगी।

सिरदर्द होने पर दालचीनी के पाउडर को पानी में मिलाकर पेस्ट बनाकर माथे पर लगाएं।

स्कीन संबंधी बीमारी जैसे कील-मुंहासे, काले दाग-धब्बे होने पर दालचीनी के पाउडर को नीबू के उस में मिलाकर लगाएं।

यदि आपके मुंह से बदबू आती है तो दालचीनी का छोटा टुकड़ा चूसें।

दस्त की समस्या होने पर एक चम्मच दालचीनी पाउडर सुबह-शाम पानी के साथ लें।


32 किशमिश खाने से छू मंतर हो जाएगा ब्लड प्रेशर=

आपको अक्सर चक्कर आते हैं, कमजोरी महसूस होती है तो हो सकता है कि आप लो ब्लड प्रेशर के शिकार हों। ज्यादा मानसिक तनाव, कभी क्षमता से ज्यादा शारीरिक काम करने से अक्सर लोगों में लो ब्लडप्रेशर की शिकायत होने लगती है।

कुछ लोग इसे नजरअन्दाज कर देते हैं तो कुछ लोग डॉक्टर के यहां चक्कर लगाकर परेशान हो जातें हैं। लेकिन आयुर्वेद में लो ब्ल्डप्रेशर को कन्ट्रोल करने के लिए कारगर इलाज है वो है किशमिश। नीचे बताई जा रही विधि को लगातार 32 दिनों तक प्रयोग में लाने से आपको कभी भी लो ब्लड प्रेशर की शिकायत नहीं होगी।
-32 किशमिश लेकर एक चीनी के बाउल में पानी में डालकर रात भर भिगोएं। सुबह उठकर भूखे पेट एक-एक किशमिश को खूब चबा-चबा कर खाएं,पूरे फायदे के लिए हर किशमिश को बत्तीस बार चबाकर खाएं। इस प्रयोग को नियमित बत्तीस दिन करने से लो ब्लडप्रेशर की शिकायत कभी नहीं होगी।
विशेष-जिसको लो बी पी की शिकायत हो और अक्सर चक्कर आते हों तो आवलें के रस में शहद मिलाकर चाटने से जल्दी आराम होता है।
-लो बी पी के समय व्यक्ति को ज्यादा बोलना नहीं चाहिए। चुपचाप बायीं करवट लेट जाना चाहिए थोड़ी देर में नीदं आ जाएगी और लो बी पी में फायदा होगा।


नींबू के रोजाना प्रयोग से होता है रंग गोरा=

आज की भौतिकतावादी युग में हर कोई सुन्दर दिखना चाहता है। किसी लडके की शादी के लिए उसके मां बाप गोरी लडकी ही चाहते है। लडकियां अपने पति का रंग गोरा ही चाहती हैं ।अगर आप अपने सांवले रंग से परेशान हैं तो घबराइये नहीं कुछ आसान आयुर्वेद नुस्खे ऐसे हैं जिनसे आपका सांवलापन दूर हो सकता है।

1. एक बाल्टी ठण्डे या गुनगुने पानी में दो नींबू का रस मिलाकर गर्मियों में कुछ महीने तक नहाने से त्वचा का रंग निखरने लगता है (इस विधि को करने से त्वचा से सम्बन्धी कई रोग ठीक हो जाते हैं )।

2. आंवला का मुरब्बा रोज एक नग खाने से दो तीन महीने में ही रंग निखरने लगते है।

3. गाजर का रस आधा गिलास खाली पेट सुबह शाम लेने से एक महीने में रंग निखरने लगता है।

रोजाना सुबह शाम खाना खाने के बाद थोड़ी मात्रा में सांफ खाने से खून साफ होने लगता है और त्वचा की रंगत बदलने लगती है।,अब न हों परेशान मुहासों से=

सही खानपान न होने के कारण और चारों ओर फैले प्रदूषण से अधितर लोग चेहरे पर मुहासों की समस्या से परेशान हैं। काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें इस समस्या से छुटकारा नहीं मिलता। लेकिन आयुर्वेद में कुछ ऐसे नुस्खें बताए गए हैं जिनके प्रयोग से आपको मुहासों की इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है।

- नीबूं के रस में गुलाबजल मिलाकर चेहरे पर लगाएं। तीस मिनट बाद चेहरा सादा पानी से धो लें।

-गाय के कच्चे दूध में जायफल को घिस लें और पेस्ट तैयार करें, इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं फिर सूखने के बाद उबटन की तरह छुड़ा लें इसके बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो लें। इस प्रयोग से 4 से 5दिनों के अन्दर ही मुहासे गायब होने लगेंगे और उनके दाग भी नहीं बनेंगे।

- जैतून के तेल को रोज रात में सोते समय चेहरे पर लगाएं ऐसा करने से मुहासे और चेहरे पर हो रही फुंसियां ठीक हो जाती हैं।

क्या आपको कुछ याद नहीं रहता...?

आजकल अच्छा खान पान न होने की वजह से याददाश्त का कमजोर होना एक आम समस्या बन गई है।हर आदमी अपनी भूलने की आदत से परेशान है लेकिन अब आपको परेशान हो की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आयुर्वेद में इस बीमारी को दूर करने के सरलतम उपाय बताए हैं।


1. सात दाने बादाम के रात को भिगोकर सुबह छिलका उतार कर बारीक पीस लें । इस पेस्ट को करीब 250 ग्राम दूध में डालकर तीन उबाल लगाऐं। इसके बाद इसे नीचे उतार कर एक चम्मच घी और दो चम्मच शक्कर मिलाकर ठंडाकर पीऐं। 15 से 20 दिन तक इस विधि को करने से याददाश्त तेज होती है।

2. भीगे हुए बादाम को काली मिर्च के साथ पीस लें या ऐसे ही खूब चबाचबाकर खाऐं और ऊपर से गुनगुना दूध पी लें।

3. एक चाय का चम्मच शंखपुष्पी का चूर्ण दूध या मिश्री के साथ रोजाना तीन से चार हफ्ते तक लें ।

विशेष: सिर का दर्द, आंखों की कमजोरी, आंखों से पानी आना, आंखों में दर्द होने जैसे कई रोगों में यह विधि लाभदायक है


क्या आपको चश्मा लगा है...?

आजकल काम या पढ़ाई के कारण जरूरत से ज्यादा आंखों पर बोझ पड़ रहा है। पौष्टिक खाने की कमी के कारण भी अधिकाशंत लोगो की आखे कमजोर होती जा रही हैं । अक्सर देखने में आता है कि छोटे-छोटे बच्चों को भी जल्दी ही मोटे नम्बर का चश्मा चढ़ जाता है।अगर आपको भी चश्मा लगा है तो आपका चश्मा उतर सकता है। नीचे बताए नुस्खों को करीब चालीस दिनों तक प्रयोग में लाएं निश्चित ही आपकी आखें पर लगा चश्मा उतर जाएगा साथ थी आखों की रोशनी भी तेज होगी।

1. बादाम की गिरी, सौंफ बड़ी वाली और कूजा मिश्री(कूजा मिश्री न मिले तो साधारण मिश्री भी ले सकते हैं)तीनों को बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। रोज एक चम्मच एक गिलास दूध के साथ रात को सोते समय लें ।

लाभ- इस विधि को अपनाने से दिमाग की गर्मी शांत होती है, याददाश्त तेज होती है साथ ही बातों को भूल जाने की बिमारी भी खत्म हो जाती है।
2. पैर के तलवों में सरसों का तेल मालिश करने से आखों की रोशनी तेज होती है।

3. सुबह उठते ही मुंह में ठण्डा पानी भरकर मुंह फुलाकर आखों में छींटे मारने से आखें की रोशनी बढ़ती है।

4. त्रिफला के पानी से आखें धोने से आखों की रोशनी तेज होती है


क्या आप मुंह के छालों से परेशान है..

आज असंतुलित खान पान की वजह के कारण मुंह में छाले होना, पेट का खराब होना आम समस्या हो गई है। कई तरह की दवाईयां इस्तेमाल करने के बाद भी लोगों के मुह के छाले ठीक नहीं हो पातेहैं।घबराइए नहीं जो छाले किसी भी दवा से ठीक नहीं हो रहे हैं नीचे दिए जा रहे नुस्खों से निश्चित ही ठीक हो जाऐंगे।


1. छोटी हरड़ को बारीक पीसकर छालों पर दिन में दो तीन बार लगाने से मुंह तथा जबान दोनों के छाले ठीक हो जाते हैं।

2. तुलसी की चार पांच पत्तियां रोजना सुबह और शाम को चबाकर ऊपर से थोड़ा पानी पी लें( ऐसा चार पांच दिनों तक करें) ।

3. करीब दो ग्राम सुहागे का पावडर बनाकर थोड़ी सी ग्लिसरीन में मिलाकर छालों पर दिन में दो तीन बार लगाएं छालों में जल्दी फायदा होगा।

विशेष- जिन लोगों को बार-बार छाले होने की शिकायत रहती उन्हें टमाटर जादा खाने चाहिए।

Tuesday, March 15, 2011

स्वभाव से आदमी बनता है बडा़(Source: धर्म डेस्क. उज्जैन )

व्यक्ति के हृदय में अहंकार आते ही उसे नष्ट होते देर नहीं लगती। अहंकारी को हर जगह उपेक्षा ही मिलती है। जबकि विनम्र को न केवल अपने जीवन में बल्कि परमात्मा के यहां भी यश और सम्मान मिलता है।

महाभारत का प्रसंग है। युद्ध अपने अंतिम चरण में था। भीष्म पितामह शैय्या पर लेटे जीवन की अंतिम घडिय़ां गिन रहे थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था और वे सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे थे। धर्मराज युधिष्ठिर जानते थे कि पितामह उच्च कोटि के ज्ञान और जीवन संबंधी अनुभव से संपन्न हैं। इसलिए वे अपने भाइयों और पत्नी सहित उनके समक्ष पहुंचे और उनसे विनती की- पितामह। आप विदा की इस बेला में हमें जीवन के लिए उपयोगी ऐसी शिक्षा दें, जो हमेशा हमारा मार्गदर्शन करें।

तब भीष्म ने बड़ा ही उपयोगी जीवन दर्शन समझाया। नदी जब समुद्र तक पहुंचती है, तो अपने जल के प्रवाह के साथ बड़े-बड़े वृक्षों को भी बहाकर ले आती है। एक दिन समुद्र ने नदी से प्रश्न किया। तुम्हारा जलप्रवाह इतना शक्तिशाली है कि उसमें बड़े-बड़े वृक्ष भी बहकर आ जाते हैं। तुम पलभर में उन्हें कहां से कहां ले आती हो? किंतु क्या कारण है कि छोटी व हल्की घास, कोमल बेलों और नम्र पौधों को बहाकर नहीं ला पाती। नदी का उत्तर था जब-जब मेरे जल का बहाव आता है, तब बेलें झुक जाती हैं और उसे रास्ता दे देती हैं। किंतु वृक्ष अपनी कठोरता के कारण यह नहीं कर पाते, इसलिए मेरा प्रवाह उन्हें बहा ले आता है।

इस छोटे से उदाहरण से हमें सीखना चाहिए कि जीवन में सदैव विनम्र रहे तभी व्यक्ति का अस्तित्व बना रहता है।सभी पांडवों ने भीष्म के इस उपदेश को ध्यान से सुनकर अपने आचरण में उतारा और सुखी हो गए।


कुछ ऐसे ही विनम्रता के ज़स्बातों को दर्शाने के लिए यह शेर अर्ज़ है --

आंधियां मजबूत दरखतों को पटक कर चली जायेंगी ,
बचेंगी वही शाख जो लचक के झुक जायेंगी .

Thursday, March 10, 2011

आपको मालामाल बना देगा यह शंख (Source: धर्म ङेस्क. उज्जैन )

जब भी घर में किसी तरह की पूजा की जाती है, तो उसमे शंख जरूर रखा जाता है। शंख को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। घर के पूजास्थल में जो वामावर्ती शंख रखा जाता है उसे विष्णु का और दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। शंख का एक और बहुत सुन्दर रूप मोती शंख को श्री यंत्र का प्राकृतिक स्वरूप माना गया है। मोती शंख दोनों शंख से देखने में ज्यादा सुन्दर दिखाई देता है। इसका उपयोग तंत्र क्रियाओं में किया जाता है। कुछ साधारण तंत्र प्रयोग इस प्रकार हैं-

-यदि इस शंख को कारखाने में स्थापित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है।

-यदि मोती शंख को मंत्र सिद्ध व प्राण प्रतिष्ठा पूजा कर स्थापित किया जाए तथा उसमें जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और आर्थिक उन्नति होती है।

-मोती शंख को घर में स्थापित कर यदि रोज ऊं श्रीं महालक्ष्मैय नम: ग्यारह बार बोलकर एक- एक चावल का दाना शंख में भरते रहे। इस प्रकार ग्यारह दिन तक प्रयोग करें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।

-यदि व्यापार में घाटा हो रहा है। दुकान में आय नहीं हो रही हो तो एक मोती शंख दुकान के गल्ले में रखा जाये तो इससे व्यापार में वृद्धि होती है।


गुरु हो अशुभ तो यह टोटके करें

Source: धर्म डेस्क. उज्जैन |


व्यक्ति की कुंडली में गुरु अशुभ होता है उसकी पढ़ाई में कई परेशानियां आती हैं। या तो उसकी पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है या फिर अन्य किसी कारण से वह अधिक नहीं पढ़ पाता। जिस व्यक्ति की कुंडली में गुरु अशुभ होता है उसके सिर के बाल उड़ जाते हैं, उसके मान-सम्मान में कमी आती है तथा गले के रोग हो जाते हैं। गुरु के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए कुछ साधारण टोटके इस प्रकार हैं-

उपाय-

- गुरुवार का व्रत रखें।

- केसर का सेवन करें तथा सोने की अंगूठी धारण करें।

- पीले फूल एवं फलों से ब्रह्माजी का पूजन करें। इसके बाद फलों को प्रसाद के रूप में बांट दें।

- मस्तक पर पीला चंदन, हल्दी अथवा केसर का तिलक करें।

- पीपल के वृक्ष में प्रतिदिन पानी डालें।

- बारह बादाम कपड़े में बांधकर लोहे के बर्तन में बंद करके अपने पास रखें और उसे खोलकर नहीं देंखे।

- कपिला (केसरिया रंग की) गाय की पूजा करें।

- पीले कपड़े में चने की दाल बांधकर दान करें।..


मंगल को जन्मे, मंगल ही करते हैं हनुमान
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हनुमान को संकट मोचन कहा गया है। वे पलभर में ही भक्तों के बड़े-बड़े संकट समाप्त कर देते हैं। हनुमानजी सीताराम के आर्शीवाद से अष्टचिरंजिव में शामिल है। अत: वे भगवान शिव की तरह ही तुरंत प्रसन्न होने वाले और भक्तों पर सर्वस्व न्यौछावर करने वाले हैं। ऐसी मान्यता है कि हनुमानजी का जन्म मंगलवार को हुआ। अत: मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।

जहां-जहां श्रीराम का नाम पूरी श्रद्धा से लिया जाता है हनुमानजी वहां किसी ना किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। ऐसी कई कथाएं हैं जहां हनुमान ने श्रीराम के भक्तों का पूर्ण कल्याण किया है। हनुमान के नाम मात्र से ही भूत पिशाच निकट नहीं आते। सारी समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

हनुमानजी ही ऐसे भक्त और भगवान हैं जो हमारे सभी दुख और परेशानियों का समाधान कुछ ही क्षण में कर सकते हैं। बस आवश्यकता है तो सभी अधार्मिक कार्यों और कुसंगति को छोड़कर श्रीराम की श्रद्धा और भक्ति में मन लगाने की।

मंगलवार के दिन हनुमानजी की पूजा से सभी मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि पवनपुत्र की पूजा के लिए कोई विशेष मुहूर्त या दिन नहीं है। हम कभी भी सच्चे मन से हनुमानजी का स्मरण, पूजन-अर्चन कर सकते हैं।

सभी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए हनुमान चालिसा का पाठ सबसे सरल और सुलभ उपाय है। प्रतिदिन हनुमान चालिसा का पाठ करने वाले भक्तों को सभी सुख और धन की प्राप्ति होती है। ऐसे लोगों को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती।


किराए के घर में कैसे बढ़ेगा पैसा?

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काफी लोगों का सपना होता है कि उनका अपना सुंदर सा आशियाना हो लेकिन सभी का यह सपना पूरा नहीं हो पाता। जो लोग किराए के घर में रहते हैं वहां के वास्तु दोष की वजह से अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं कर पाते और खुद के घर का सपना, सपना ही रह जाता है। घर का सही वास्तु हमारी आय बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अगर आप रेंट पर फ्लेट लेते हैं या किराए का घर है तो मकान मालिक की बिना अनुमति मकान में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। ऐसे घरों में अक्सर वास्तु शास्त्र के अनुसार कई कमियां रहती हैं। इन दोषों की वजह से वहां रहने वाले लोगों को धन की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वास्तु के अनुसार बने घर में किराएदार भी सुखी और संपन्न और धनवान रहते हैं। यदि आप भी चाहते हैं कि आपके घर में किसी तरह का वास्तुदोष ना रहे तो इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर किराए के भवन में रहते हुए भी वास्तुदोष दूर किया जा सकते हैं। वास्तु दोष दूर होने के बाद आपके परिवार की आय में बढ़ोतरी होगी और पैसों की तंगी नहीं रहेगी।

- घर का उत्तर-पूर्व का भाग खाली रखें।

- घर के दक्षिण-पश्चिम दिशा के भाग में अधिक भार या सामान रखें।

- घर में पानी की सप्लाई उत्तर-पूर्व दिशा से लें।

- बेड रूम में पलंग का सिरहाना दक्षिण दिशा में रखें और सोते समय सिर दक्षिण दिशा में व पैर उत्तर दिशा में रखें। यदि ऐसा संभव न हो तो पश्चिम दिशा में सिरहाना व सिर कर सकते हैं।

- खाना हमेशा दक्षिण-पूर्व की ओर मुंह करके ही खाएं।

- आपकी आय काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि घर में भगवान का स्थान या मंदिर कहां है? वास्तु के अनुसार भगवान के लिए उत्तर-पूर्व दिशा श्रेष्ठ रहती है। इस दिशा में मंदिर स्थापित करें। यदि मंदिर किसी ओर दिशा में हो तो पानी पीते समय मुंह ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रखें।

इस मंत्र से मिलेगा अपार धन

ी लक्ष्मी की जिस पर कृपा हो जाए उस व्यक्ति को जीवन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती। पैसा, इज्जत, शोहरत सभी कुछ उसके पास होता है। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्र, स्तुति व श्लोकों की रचना कई गई है। इन्हीं में श्री लक्ष्मी द्वादशनाम स्तोत्रम् भी एक है।

इस स्त्रोत का प्रतिदिन जप करने से मां लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती है और साधक को मनचाहा फल प्रदान करती है। यह स्तुति इस प्रकार है-
श्री लक्ष्मी द्वादशनाम स्तोत्रम्-

ईश्वरीकमला लक्ष्मीश्चलाभूतिर्हरिप्रिया।

पद्मा पद्मालया संपत् रमा श्री: पद्मधारिणी।।

द्वादशैतानि नामानि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत्।

स्थिरा लक्ष्मीर्भवेत्तस्य पुत्रदारादिभिस्सह।।



जप विधि

- सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ वस्त्र पहनकर देवी लक्ष्मी का पूजन करें। उन्हें लाल गुलाब के फूल अर्पित करें।

- देवी लक्ष्मी की मूर्ति के सामने आसन लगाकर स्फटिक की माला लेकर इस स्त्रोत का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।

- आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।

- एक ही समय, आसन व माला हो तो यह स्त्रोत जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।..

हर समस्या का हल है राम स्तोत्र

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हर इंसान के जीवन में परेशानियों का आना-जाना लगा ही रहता है। कई बार समस्याएं इतनी अधिक हो जाती हैं कि इंसान टूट सा जाता है उसे कोई हल सुझाई नहीं देता। ऐसे में सिर्फ भगवान का सहारा ही उसे बचा सकता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम का नाम लेने मात्र से सभी समस्याओं का निदान संभव है। यदि नित्य राम स्तोत्र का पाठ किया जाए तो ऐसी कोई मनोकामना नहीं जिसे भगवान राम पूरी नहीं करते। राम स्तोत्र भगवान राम की उपासना करने बहुत ही सरल व सहज माध्यम है-

राम स्तोत्र-
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।

सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।

जप विधि

- सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ वस्त्र पहनकर प्रभु श्रीराम का पूजन करें।

- भगवान राम की मूर्ति के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस स्तोत्र का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।

- आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।

- एक ही समय, आसन व माला हो तो यह स्तोत्र जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।......


वास्तु शांति के शुभ मुहूर्त

नए घर में प्रवेश से पूर्व वास्तु शांति अर्थात यज्ञादि धार्मिक कार्य अवश्य करवाने चाहिए। वास्तु शांति कराने से भवन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है तभी घर शुभ प्रभाव देता है। जिससे जीवन में खुशी व सुख-समृद्धि आती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार मंगलाचरण सहित वाद्य ध्वनि करते हुए कुलदेव की पूजा व अग्रजों का सम्मान करके व ब्राह्मणों को प्रसन्न करके गृह प्रवेश करना चाहिए। गृह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शुभ होता है। इसके लिए शुभ नक्षत्र वार एवं तिथि इस प्रकार हैं-

शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, व शुक्रवार शुभ हैं।

शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी।

शुभ नक्षत्र- अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, उत्ताफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनुराधा एवं मघा।

अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि का विचार कर लेना चाहिए।.........

Sunday, March 6, 2011

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्‍यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,

स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।

होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालों।


सोमनाथ / कैफी़ आज़मी

बुतशिकन कोई कहीं से भी ना आने पाये
हमने कुछ बुत अभी सीने में सजा रक्खे हैं
अपनी यादों में बसा रक्खे हैं

दिल पे यह सोच के पथराव करो दीवानो
कि जहाँ हमने सनम अपने छिपा रक्खे हैं
वहीं गज़नी के खुदा रक्खे हैं

बुत जो टूटे तो किसी तरह बना लेंगे उन्हें
टुकड़े टुकड़े सही दामन में उठा लेंगे उन्हें
फिर से उजड़े हुये सीने में सजा लेंगे उन्हें

गर खुदा टूटेगा हम तो न बना पायेंगे
उस के बिखरे हुये टुकड़े न उठा पायेंगे
तुम उठा लो तो उठा लो शायद
तुम बना लो तो बना लो शायद

तुम बनाओ तो खुदा जाने बनाओ क्या
अपने जैसा ही बनाया तो कयामत होगी
प्यार होगा न ज़माने में मुहब्बत होगी
दुश्मनी होगी अदावत होगी
हम से उस की न इबादत होगी

वह्शते-बुत शिकनी देख के हैरान हूँ मैं
बुत-परस्ती मिरा शेवा है कि इंसान हूँ मैं
इक न इक बुत तो हर इक दिल में छिपा होता है
उस के सौ नामों में इक नाम खुदा होता है..



तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो / कैफ़ी आज़मी
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
आँखों में नमी हँसी लबों पर

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो

बन जायेंगे ज़हर पीते पीते
ये अश्क जो पीते जा रहे हो

जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है
तुम क्यों उन्हें छेड़े जा रहे हो

रेखाओं का खेल है मुक़द्दर

रेखाओं से मात खा रहे हो ....


ये बता दे मुझे ज़िन्दगी / जावेद अख़्तर

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

प्यार की राह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
फूल क्यूँ सारे मुरझा गये
किस लिये बुझ गई चाँदनी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

कल जो बाहों में थी
और निगाहों में थी
अब वो गर्मी कहाँ खो गई
न वो अंदाज़ है
न वो आवाज़ है
अब वो नर्मी कहाँ खो गई
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

बेवफ़ा तुम नहीं
बेवफ़ा हम नहीं
फिर वो जज़्बात क्यों सो गये
प्यार तुम को भी है
प्यार हम को भी है
फ़ासले फिर ये क्या हो गये
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी



शोर यूँ ही न परिंदों ने मचाया होगा / कैफ़ी आज़मी

शोर यूँ ही न परिंदों[1] ने मचाया होगा,

कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा ।

बानी-ए-जश्ने-बहाराँ[2] ने ये सोचा भी नहीं
किस ने काटों को लहू अपना पिलाया होगा ।

अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे,
ये सराब[3] उन को समंदर नज़र आया होगा ।

बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी,
सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा ।

शब्दार्थ:

  1. पक्षियों
  2. वसन्तोत्सव के प्रेरणा स्रोतों
  3. धोखा

ताजमहल की छाया में / सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"

मुझ में यह सामर्थ्य नहीं है मैं कविता कर पाऊँ,
या कूँची में रंगों ही का स्वर्ण-वितान बनाऊँ ।
साधन इतने नहीं कि पत्थर के प्रासाद खड़े कर-
तेरा, अपना और प्यार का नाम अमर कर जाऊँ।

पर वह क्या कम कवि है जो कविता में तन्मय होवे
या रंगों की रंगीनी में कटु जग-जीवन खोवे ?
हो अत्यन्त निमग्न, एकरस, प्रणय देख औरों का-
औरों के ही चरण-चिह्न पावन आँसू से धोवे?

हम-तुम आज खड़े हैं जो कन्धे से कन्धा मिलाये,
देख रहे हैं दीर्घ युगों से अथक पाँव फैलाये
व्याकुल आत्म-निवेदन-सा यह दिव्य कल्पना-पक्षी:
क्यों न हमारा ह्र्दय आज गौरव से उमड़ा आये!

मैं निर्धन हूँ,साधनहीन ; न तुम ही हो महारानी,
पर साधन क्या? व्यक्ति साधना ही से होता दानी!
जिस क्षण हम यह देख सामनें स्मारक अमर प्रणय का
प्लावित हुए, वही क्षण तो है अपनी अमर कहानी !

रचनाकाल/स्थल : २० दिसम्बर १९३५, आगरा





मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय

मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,
मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ?
काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,
मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ?

मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले ?
मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?
मैं कब कहता हूँ विजय करूँ मेरा ऊँचा प्रासाद बने ?
या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने ?

पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे ?
नेतृत्व न मेरा छिन जावे क्यों इसकी हो परवाह मुझे ?
मैं प्रस्तुत हूँ चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बने-
फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने !

अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है-
क्या वह केवल अवसाद-मलिन झरते आँसू की माला है ?
वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है-
वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन कारी हाला है

मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया-
मैंने आहुति बन कर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है !
मैं कहता हूँ, मैं बढ़ता हूँ, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूँ
कुचला जाकर भी धूली-सा आंधी सा और उमड़ता हूँ

मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने
इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने !
भव सारा तुझपर है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने-
तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने


जौहर / श्यामनारायण पाण्डेय / मंगलाचरण

गगन के उस पार क्या,
पाताल के इस पार क्या है?
क्या क्षितिज के पार? जग
जिस पर थमा आधार क्या है?

दीप तारों के जलाकर
कौन नित करता दिवाली?
चाँद - सूरज घूम किसकी
आरती करते निराली?

चाहता है सिन्धु किस पर
जल चढ़ाकर मुक्त होना?
चाहता है मेघ किसके
चरण को अविराम धोना?

तिमिर - पलकें खोलकर
प्राची दिशा से झाँकती है;
माँग में सिन्दूर दे
ऊषा किसे नित ताकती है?

गगन में सन्ध्या समय
किसके सुयश का गान होता?
पक्षियों के राग में किस
मधुर का मधु - दान होता?

पवन पंखा झल रहा है,
गीत कोयल गा रही है।
कौन है? किसमें निरन्तर
जग - विभूति समा रही है?

तूलिका से कौन रँग देता
तितलियों के परों को?
कौन फूलों के वसन को,
कौन रवि - शशि के करों को?

कौन निर्माता? कहाँ है?
नाम क्या है? धाम क्या है?
आदि क्या निर्माण का है?
अन्त का परिणाम क्या है?

खोजता वन - वन तिमिर का
ब्रह्म पर पर्दा लगाकर।
ढूँढ़ता है अन्ध मानव
ज्योति अपने में छिपाकर॥

बावला उन्मत्त जग से
पूछता अपना ठिकाना।
घूम अगणित बार आया,
आज तक जग को न जाना॥

सोचता जिससे वही है,
बोलता जिससे वही है।
देखने को बन्द आँखें
खोलता जिससे वही है॥

आँख में है ज्योति बनकर,
साँस में है वायु बनकर।
देखता जग - निधन पल - पल,
प्राण में है आयु बनकर॥

शब्द में है अर्थ बनकर,
अर्थ में है शब्द बनकर।
जा रहे युग - कल्प उनमें,
जा रहा है अब्द बनकर॥

यदि मिला साकार तो वह
अवध का अभिराम होगा।
हृदय उसका धाम होगा,
नाम उसका राम होगा॥

सृष्टि रचकर ज्योति दी है,
शशि वही, सविता वही है।
काव्य - रचना कर रहा है,
कवि वही, कविता वही है॥


सारंग, काशी
चैत्री, संवत १९९६..


चेतक की वीरता / श्यामनारायण पाण्डेय

रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड जाता था

गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं

निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में

बढते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया।

भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग.........