Sunday, May 22, 2011

बात कड़वी ही सही, बोली तो मीठी हो

एक पंडित ने पहलवान की कुंडली देखी। उसे बताया कि तुम्हारे पास धन, दौलत और ताकत खूब रहेगी। परिवार का सुख भी रहेगा लेकिन तुम्हारे सारे परिजन तुम्हारे रहते ही मर जाएंगे। परिवार में तुम अकेले ही रह जाओगे। पहलवान डर गया, आंखों में आंसू आ गए। पंडित पर गुस्से में तमतमाया और अच्छे से धुनाई कर दी।

तुझसे मैंने भविष्य पूछा था, तू मेरे परिवार के मिटने की बात कर रहा है।

पंडितजी जान छुड़ाकर भागे। वैद्य के पास पहुंचे। मरहम-पट्टी करवाई। कभी किसी पहलवान की कुंडली न देखने की कसम खा ली। दक्षिणा तो मिली नहीं, उल्टे जान के लाले पड़ गए।

उन पंडितजी के घर के पास ही एक दूसरे पंडित आचार्य भी रहते थे। पिटाई की बात सुनी तो वे उनका हालचाल जानने पहुंचे। आचार्य जी ने पूछा कैसे हुआ यह सब।

पंडित बोले अरे उसकी कुंडली ही ऐसी थी मैं क्या करता? उसके सारे रिश्तेदारों की मौत उसके सामने ही हो जाएगी। ये तय है। उससे झूठ कैसे बोलता।

आचार्य जी ने समझाया, ये बात तुम उसे किसी दूसरे तरीके से बता सकते थे। सीधे-सीधे ऐसा बोलने की क्या जरूरत थी।

पंडित जी बोले, तो कैसे बोलता।

आचार्य जी बोले मैं उसके पास जाता हूं, तुम्हारी भी दक्षिणा वसूल करके लाऊंगा उससे।

पंडितजी बोले, न-न उसके पास मत जाना बहुत जालिम है। मैं तो जवान था सो इतनी मार सह गया। आप नहीं सह पाएंगे, आपकी तो उम्र भी ज्यादा है।

आचार्यजी बोले तुम मेरी फिक्र मत करों मैं संभाल लूंगा।

अगले दिन आचार्यजी पहलवान के घर पहुंच गए। पहलवान पहले ही पंडित से चिढ़ा हुआ था, दूसरे पंडित को देखकर नथूने फूला कर बोला, देखों आचार्यजी पहले ही एक पंडित ने मेरा मूड बहुत खराब कर दिया है। आपने भी ऐसी-वैसी बात की तो खैर नहीं है।

आचार्य जी ने कहा आप निश्चिंत रहिए, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं सब सही-सही बताऊंगा।

आचार्यजी ने पहलवान की कुंडली बनाई और देखने लगे। पहले पंडित ने पहलवान की कुंडली के बारे में जो बताया था, सब वैसा ही था।

आचार्यजी ने पहलवान को सब वैसा ही बता दिया। पहलवान खुश हो गया और दोगुनी दक्षिणा देकर आचार्य ्रजी को विदा किया। आचार्यजी ने पंडित के पास आकर उसके हिस्से की दक्षिणा भी दी तो पंडितजी की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं।

आपने उसे सब बता दिया, पंडित ने आश्चर्यचकित होकर पूछा। उसके परिवार वालों की मौत के बारें में भी।

आचार्यजी ने कहा हां सब बता दिया। वो खुश हो गया।

क्या बताया आपने?

मैंने उससे कहा कि तुम बहुत किस्मत वाले हो। तुम्हारे पूरे खानदान में तुम्हारे पास ही सबसे ज्यादा दौलत, शोहरत और ताकत होगी, यहां तक कि तुम्हारे पूरे खानदान में उम्र भी सबसे ज्यादा तुम्हारी ही है।

वो खुश हो गया और मुझे दोगुनी दक्षिणा दे दी। जबकि इसका मतलब तो यही था कि उसके सारे रिश्तेदार उसके सामने ही मर जाएंगे।

पंडित को अपनी गलती का एहसास हो गया। सभी जानते हैं कि सच कड़वा होता है लेकिन उसे कड़वे तरीके से ही बोला जाए, ये जरूरी नहीं है। कड़वी से कड़वी बात भी बोलते समय याद रखें कि आपके बोलने का अंदाज ऐसा हो कि सुनने वाले को बुरा नहीं लगे।

भगवान को ऐसा व्यक्ति ही सर्वाधिक पसंद है

हर व्यक्ति का कोई न कोई सपना अवश्य होता है। अपने सपने को हकीकत में बदलने या मंजिल को हांसिल करने के लिये इंसान हर कोशिश करता है। इंसान ऐसी कोई भी कसर या कमी छोडऩा नहीं चाहता जो आगे चलकर उसकी सफलता में रोड़ा बन जाए। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि संयोग या दुर्भाग्य से एक के बाद एक कई रुकावटें या बाधाएं आती ही जाती हैं। यहां तक कि अच्छे काम को करने में तो और भी ज्यादा रुकावटे आती हैं। लेकिन इंसान यदि सच्चा है और भगवान की नजरों में योग्य है तो उस इंसान की सारी बाधाएं या कठिनाइयां अपने आप ही दूर हो जाती हैं। आइये चलते हैं ऐसी ही एक कहानी में जो हमें बहुत कीमती सबक सिखाती है........

एक बार एक व्यक्ति भगवान को देने के लिये तलवार और राजमुकुट का उपहार लेकर गया। वह भगवान से एकांत में मिलना चाहता था। लेकिन द्वारपालों ने उसे बाहर ही रोक दिया और मिलने का कारण पूछा। उस व्यक्ति ने तलवार और मुकुट का उपहार देने की बात बताई। लेकिन द्वरापालों ने यह कहकर उसे अंदर जाने से रोक दिया कि भगवान को तुम्हारे इन उपहारों की कोई आवश्यकता ही नहीं है। भगवान का कोई शत्रु नहीं है, इसलिये उन्हें इस तलवार से क्या काम? तथा मुकुट तो धरती के छोटे-छोटे राजा लोग लगाते हैं, भगवान तो इस पूरे ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं, मालिक हैं उन्हें मुकुट से क्या लेना-देना। यह चर्चा चल ही रही थी कि पास में ही एक बूढ़ा आदमी अचानक ठोकर खाकर गिर गया। उसे देखते ही वह व्यक्ति बात करना बंद करके तुरंत उस बूढ़े को सहारा देकर उठाने के लिये दोड़ा। बूढ़े व्यक्ति की हालत देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसकी आवश्यक मदद करने के बाद जब वह लोटा तो उसने देखा कि रास्ता रोकने वाले द्वारपाल अब वहां से जा चुके थे। अब वह बगैर किसी रुकावट के सीधा भगवान से मिलने जा सकता था।

........शायद उस बूढ़े के रूप में भगवान उस व्यक्ति की परीक्षा ले रहा था। उस व्यक्ति के मन में ओरों के लिये दया और करुणा की भावना थी इसीलिये वह परीक्षा में उत्तीर्ण हो सका।

Saturday, May 21, 2011

किसी के विचारों को बदलना है तो उन्हें प्रेम करना सिखाएं...

दूसरों को अपने साथ जोड़ा जा सकता है। बल्कि जीवन का लंबा समय उनके साथ बिताया भी जा सकता है, लेकिन जब उनके विचारों को परिवर्तन करने का अवसर आता है तो या तो मतभेद हो जाते हैं या आप इसमें असफल हो जाएंगे। यह मामला केवल बाहरी दुनिया का नहीं है।

परिवार में यदि माता-पिता अपने कुल की परंपरानुसार अच्छे विचारों को बच्चों में भी उतारना चाहते हैं तो यही परेशानी आती है। बच्चे आपका कहना मान लेंगे, आपके अनुसार दिनचर्या भी कर लेंगे, लेकिन विचार बदलने को तैयार नहीं होते।

किसी का दृष्टिकोण बदलना है तो प्रेम को जीवन में उतारना होगा। दबाव में आप किसी की जीवनशैली बदल सकते हैं, चिंतनशैली नहीं बदल सकते। इसके लिए प्रेम की ही जरूरत पड़ेगी। अपने प्रेम को इतना विस्तार दिया जाए, बढ़ाया जाए कि फिर उसमें अपनेआप अहंकार गलने लगता है।

जैसे ही प्रेम में से अहंकार गया, भक्ति का प्रवेश शुरू हो जाता है। प्रेम जैस-जैसे ऊंचा उठेगा, भक्ति का रूप लेता जाएगा। इसलिए परिवारों में बच्चों को भक्ति करना सिखाएं। आप उन्हें जो भी बनाना चाहें जरूर बनाएं, पर भक्त वे बनें ऐसा अवश्य करें। भक्त देना जानता है, लेना नहीं जानता। जैसे प्रेम मांगने लग जाए तो वासना हो जाती है।

इसी तरह भक्ति यदि मांगने लग जाए तो मात्र कर्मकाण्ड बन जाएगी। भक्ति जितनी जागेगी, परमात्मा पर भरोसा उतना बढ़ेगा। इसीलिए भक्तों के पास जाकर लोग आसानी से अपने विचार बदल लेते हैं और सद्विचार यदि सुपात्र में उतर जाएं तो ऐसे लोग परिवार, समाज और राष्ट्र को हित ही पहुंचाएंगे।

Wednesday, May 11, 2011

जीवन में शांति लाए ये दमदार सूत्र Source: धर्म डेस्क. उज्जैन |

सुख और चैन को पाने की कवायद में जिंदगी भर हर व्यक्ति दिन-रात एक कर देता है। किंतु मानव स्वभाव यह भी होता है कि वह सुख-सुकून तो चाहता है, लेकिन खुद उन बातों को साथ लेकर जीता है, जो जीवन से सुख-चैन छिन लेते हैं। कई अवसरों पर हालात यह होते हैं कि वह दूसरों को भी सुकून से रहने के नुस्खें बताता हुआ देखा जाता है। लेकिन वही तरीके खुद अपनाने में चूक करता रहता है।

प्रश्र यह है कि आख़िर इंसान ऐसा क्या करे कि अशांत व बेचैन मन और जीवन में सुकून बना रहे? इसका उत्तर धर्मशास्त्रों में बताई गई कुछ बेहद सरल बातें हैं, जो व्यावहारिक रूप से कठिन और मात्र शिक्षाप्रद लगती है, किंतु इच्छाशक्ति इनको सरल बना देती हैं -

- किसी व्यक्ति के मन को किसी भी रूप से चोट न पहुंचाए।

- किसी को कटु या कठोर वाणी न बोले यानि शब्द बाण न छोड़ें।

- सबसे अहम बात सत्य या सच बोलने का हरसंभव प्रयास करें। यह व्यक्ति को शांत, संतुलित और निश्चिंत रखने का अचूक उपाय है।

- क्रोध यानि गुस्से पर काबू रखें। दूसरों के आप पर क्रोध करने पर भी शांत रहकर बात या व्यवहार करें।

- दूसरों की निंदा या बुराई करने या सुनने से बचें। अपनी निंदा होने पर उसमें से सकारात्मक बातें ग्रहण करें।

- सुख हो या दु:ख दोनों स्थितियों में समान भाव से रहें। ऐसा करना व्यर्थ की चिंता और बेचैनी को दूर रखेगा।

- खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझ अहं भाव से दूर रहें यानि किसी को कमतर साबित करने की व्यर्थ चेष्टा न करें।

- ऐसी अशुभ बातें न करें जो किसी अवसर विशेष पर दूसरों को गहरा दु:ख, चिंता और अवसाद से भर दे।

- मौन रहने का अभ्यास करें यानि गैर जरूरी बातों या प्रतिक्रिया में अपशब्दों के इस्तेमाल से बचें।

- सहनशील बने। इसके लिए पहले जरूरी है बदले की भावना का त्याग, जो तभी संभव है जब किसी के बुरा करने पर भी क्षमा भाव रख जाए या अभ्यास किया जाए।........


5 अनमोल बातें बनाए हर काम में कुशल और सफल.......

हम अक्सर शास्त्रों, साहित्य या व्यावहारिक बोलचाल में पण्डित शब्द पढ़ते, सुनते और बोलते भी है। सामान्यत: इस शब्द का अर्थ ब्राह्मण जाति के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यह व्यावहारिक रूप से पवित्र आचरण, व्यवहार और विचारों की ओर संकेत करता है। किंतु धर्मशास्त्रों में ही पण्डित होने का मूल भाव कुशल चरित्र और व्यक्तित्व से भी जोड़ा गया है।


व्यावहारिक रूप से कुशल होने के अनेक पहलू हो सकते हैं। अक्सर शारीरिक या मानसिक या धनोपार्जन की कुशलता इंसान को पहचान देती है। सांसारिक नजरिए से तो कुशलता के पैमाने और भी हो सकते हैं, किंतु धर्मशास्त्र में लिखी कुछ बातों पर गौर करें तो इंसानी जीवन के व्यवहार, कर्म और विचार से जुडे पांच पैमाने ऐसे हैं, जिनको पूरा करने पर कोई भी इंसान पण्डित या कुशल कहलाता है। चाहे फिर वह किसी भी धर्म या जाति का हो।

डालते हैं एक नजर कुशलता या पण्डित होने से जुड़ी इन पांच बातों पर -

- विनम्रता से सज्जन को अपना बनाना।

- तप से देवकृपा पाना।

- सद्कर्मो या अच्छे व्यवहार से सभी को वशीभूत करना यानी अपना बना लेना।

- धन से जुड़ी जिम्मेदारियों को उठाकर मर्यादाओं के साथ स्त्री को सुरक्षा देना और उसका प्रेम और विश्वास पाना।

- मीठे से बालक को प्रसन्न करना।

ये पांच बातें इंसान के पूरे जीवन से जुड़े अच्छे कर्म, व्यवहार और सोच की ओर संकेत करती हैं। जिनको अपनाकर आप भी जीवन को सही दिशा दे सकते हैं।