Sunday, December 18, 2011

समन्दर में उतर जाते हैं / कमलेश भट्ट 'कमल'

समन्दर में उतर जाते हैं जो हैं तैरने वाले

किनारे पर भी डरते हैं तमाशा देखने वाले


जो खुद को बेच देते हैं बहुत अच्छे हैं वे फिर भी

सियासत में कई हैं मुल्क तक को वेचने वाले


गये थे गाँव से लेकर कई चाहत कई सपने

कई फिक्रें लिये लौटे शहर से लौटने वाले


बुराई सोचना है काम काले दिल के लोगों का

भलाई सोचते ही हैं भलाई सोचने वाले


यकीनन झूठ की बस्ती यहाँ आबाद है लेकिन

बहुत से लोग जिन्दा हैं अभी सच बोलने वाले

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