Sunday, December 18, 2011

किसलिए वो याद फिर आने लगी / अजी़ज़ आजा़द...............

किसलिए वो याद फिर आने लगी
ज़िन्दगी की शाम गहराने लगी

आज इस सूखे शजर पर किसलिए
फिर घटा आ-आ के लहराने लगी

फिर ये सावन सर पटकता है मगर
चाहतों की शाख मुर्झाने लगी

थरथराते एक पत्ते की तरह
सारी दुनिया अब नज़र आने लगी

क्या हुआ जो आज बहलाने मुझे
ज़िन्दगी क्यूँ प्यार बरसाने लगी

अब कोई ‘आज़ाद’ शिकवा किसलिए
सो ही जाएँ नींद जब आने लगी

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