वरदविनायक चतुर्थी व्रत,अनुष्ठान-वरूथिनी एकादशी व्रत,आमलकी एकादशी,षट्तिला एकादशी व्रत,पुत्रदा एकादशी व्रत,सफला एकादशी व्रत,,


शुक्लपक्ष की मध्याह्नव्यापिनीचतुर्थी के दिन वरदविनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है-पूजाव्रतेषु सर्वेषुमध्याह्नव्यापिनीतिथि:। शास्त्रों के अनुसार वैनायकीचतुर्थी [वरदविनायक चतुर्थी] का सालभरनियमपूर्वक व्रत करने से मनोभिलाषापूर्ण होती है। वैनायकीचतुर्थी में नक्तव्रतका विधान है तथा इस दिन मध्याह्नकालमें सिद्धिविनायककी षोडशोपचारविधि से अर्चना करनी चाहिए। गणेशजीके पूजन में गंध को अíपत करते समय सिंदूर, लालचंदनचढाना चाहिए। गणपति की आराधना करते समय तुलसीदलका प्रयोग न करें। ब्रह्मवैव‌र्त्तपुराणके अनुसार गणपति-पूजन में तुलसी को चढाना निषिद्ध है। गणेशजीको दूर्वा विशेष प्रिय है। अतएव वरदविनायकचतुर्थी के मध्याह्नकालमें कम से कम 21दूर्वा अवश्य चढाएं। दो-दो दूर्वा निम्नलिखित दस नाम-मंत्रों से क्रमश:चढाएं तथा अंत में 21वींदूर्वा सभी नाम-मंत्रों को एकसाथ पढकर चढाएं।

ॐगणाधिपायनम:। ॐउमापुत्रायनम:। ॐविघ्ननाशायनम:। ॐविनायकायनम:। ॐईशपुत्रायनम:। ॐसर्वसिद्धिप्रदायनम:। ॐएकदंतायनम: । ॐइभवक्त्रायनम:।ॐ मूषकवाहनायनम:। ॐकुमारगुरवेनम:।

साम‌र्थ्यवान 21दूर्वा के साथ-साथ 21मोदकों का भोग लगा सकते हैं। विनायकदेवकी उपासना से व्रती की समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं तथा वह जीवन के हर क्षेत्र में निíवघ्न प्रगति करता है। सिद्धिविनायकसे करबद्ध विनती करें-
सर्वत्र सर्वदादेव निíवघ्नंकुरु सर्वदा।मानोन्नतिम्चराज्यंचपुत्र-पौत्रान् प्रदेहिमे॥............

पद्मपुराणमें भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को बताते हैं-वैशाख के कृष्णपक्ष की एकादशी वरूथिनी के नाम से प्रसिद्ध है। यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करने वाली है। वरूथिनी के व्रत से सदा सौख्य का लाभ तथा पाप की हानि होती है। यह सबको भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है।
वरूथिनी के व्रत से मनुष्य दस हजार वर्षो तक की तपस्या का फल प्राप्त कर लेता है। इस व्रत को करनेवालावैष्णव दशमी के दिन काँसे के पात्र, उडद, मसूर, चना, कोदो, शाक, शहद, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन तथा रति-इन दस बातों को त्याग दे। एकादशी को जुआ खेलना, सोना, पान खाना, दातून करना, परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध तथा असत्य भाषण- इन ग्यारह बातों का परित्याग करे। द्वादशी को काँसे का पात्र, उडद, मदिरा, मधु, तेल, दुष्टों से वार्तालाप, व्यायाम, परदेश-गमन, दो बार भोजन, रति, सवारी और मसूर को त्याग दे।
इस प्रकार संयमपूर्वकवरूथिनीएकादशी का व्रत किया जाता है। इस एकादशी की रात्रि में जागरण करके भगवान मधुसूदन का पूजन करने से व्यक्ति सब पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त होता है। मानव को इस पतितपावनीएकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस व्रत के माहात्म्य को पढने अथवा सुनने से भी पुण्य प्राप्त होता है। वरूथिनीएकादशी के अनुष्ठान से मनुष्य सब पापों से मुक्ति पाकर वैकुण्ठ में प्रतिष्ठित होता है। जो लोग एकादशी का व्रत करने में असमर्थ हों, वे इस तिथि में अन्न का सेवन कदापि न करें। वरूथिनी एकादशी महाप्रभु वल्लभाचार्यकी जयंती-तिथि है। पुष्टिमार्गीयवैष्णवों के लिये यह दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वे इस तिथि में श्रीवल्लभाचार्यका जन्मोत्सव मनाते हैं।............

पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से बोले-धर्मनन्दन! राजा मान्धाताने महामुनिवशिष्ठ को यह बताया था कि फाल्गुन के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम आमलकी है। इसका पवित्र व्रत विष्णुलोककी प्राप्ति करने वाला है। मान्धाताके पूछने पर वशिष्ठजीने आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति की कथा और उसकी महिमा बताते हुए कहा कि आमलकी एकादशी में आंवले के वृक्ष के पास जाकर वहां रात्रि में जागरण करना चाहिए। इससे मनुष्य सब पापों से छूट जाता है और सहस्रगोदानोंका फल प्राप्त करता है।
व्रती शरीर में मृत्तिका लगाकर स्नान करे। इस एकादशी में श्रीभगवान विष्णु के अवतार श्रीपरशुरामजी की पूजा की जाती है। पूजनोपरांतइस मंत्र से उन्हें अ‌र्घ्यदें-
नमस्तेदेवदेवेशजामदग्न्यनमोऽस्तुते।गृहाणा‌र्घ्यमिमंदत्तमामलक्यायुतंहरे॥
देवदेवेश्वर! जगदग्नि-नन्दन! श्रीहरिके स्वरूप परशुरामजी! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। आंवले के फल के साथ दिया हुआ मेरा यह अ‌र्घ्यग्रहण कीजिए।
तदनन्तर भगवन्नामका स्मरण,जप,संकीर्तन करते हुए रात भर जगें। उसके बाद भगवान विष्णु के नाम लेते हुए आंवले के वृक्ष की 108अथवा 28परिक्रमा करें। द्वादशी में किसी आचार्य को भोजन कराकर पूजा में चढाई गई सामग्री उन्हें दे दें। फिर स्वयं भी व्रत का पारण करें। ऐसा करने से समस्त तीर्थो की यात्रा का पुण्यफलप्राप्त होता है। सब प्रकार के दान देने से मिलने वाला फल भी इस एकादशी के व्रत का विधिपूर्वक पालन करने से उपलब्ध हो जाता है। आमलकीएकादशी के व्रत से सब यज्ञों की अपेक्षा अधिक फल मिलता है। यह दुर्धर्षव्रत मनुष्य को सब पापों से मुक्त करने वाला है।
पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें इस व्रत के विधान का अतिविस्तृतवर्णन प्राप्त होता है।................

माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि षट्तिला एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन छ:प्रकार से तिलों का व्यवहार किया जाता है-
इस एकादशी में तिलों के जल से स्नान, तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल मिले जल को पीने, तिल का भोजन तथा तिल का दान करने से समस्त पापों का नाश होता है।
इस दिन काले तिल के प्रयोग का विशेष माहात्म्य बताया गया है। इस एकादशी का व्रत करने वाला प्रात:स्नान करके परमेश्वर श्रीकृष्ण के नाम-मंत्र का जप करे और दिन भर उपवास रखे। रात में जागरण तथा तिल से हवन करे। नैवेद्य (भोग) में तिल से बना फलाहार निवेदित करे। यह व्रत सर्वपापनाशकएवं समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
व्रती चंदन, अगर, कपूर आदि से शंख, चक्र, गदा और पद्मधारीश्रीहरिकी पूजा करें। तत्पश्चात् श्रीकृष्ण-नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हडे,नारियल अथवा बिजौरे के फल को अíपत करके विधिपूर्वक अ‌र्घ्यदे। सामग्रियों के अभाव में सौ सुपारियोंके द्वारा भी पूजन किया जा सकता है। अ‌र्घ्यका मंत्र-
कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनांगतिर्भव।संसारार्णवमग्नानांप्रसीदपुरुषोत्तम॥नमस्तेपुण्डरीकाक्ष नमस्तेविश्वभावन।सुब्रह्मण्य नमस्तेऽस्तुमहापुरुष पूर्वज॥गृहाणाघ्र्यमयादत्तंलक्ष्म्यासह जगत्पते।
सच्चिदानंदस्वरूप श्रीकृष्ण! आप बडे दयालु हैं। हर आश्रयहीन जीव को आप अपने आश्रय में लें। पुरुषोत्तम! हम भव-सागर में डूब रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न होइए। कमलनयन!आपको नमस्कार है। सुब्रह्मण्य! महापुरुष! सबके पूर्वज ! आपको नमस्कार है। जगत्पते!आप लक्ष्मी जी के साथ मेरा दिया हुआ अ‌र्घ्यस्वीकार करें। पद्मपुराणमें षट्तिला एकादशी के व्रत की विधि एवं महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है।........

पद्मपुराणकी कथा है। युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने बताया-पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। यह सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है। समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान नारायण इस तिथि के अधिदेवताहैं। चराचर प्राणियों सहित त्रिलोकी में इससे बढकर दूसरी कोई तिथि नहीं है।
पूर्वकाल में भद्रावतीपुरी के राजा सुकेतुमान्तथा महारानी चंपा बहुत समय तक कोई पुत्र न होने के कारण चिंता में डूबे रहते थे। एक दिन राजा घोडे पर सवार होकर गहन वन में चले गए। वहां उन्हें एक सरोवर के समीप ऋषि-मुनियों के आश्रम दिखाई पडे। राजा मुनियों के वेद-पाठ से अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने उन ऋषियों को दण्डवत् प्रणाम किया। राजा के पूछने पर मुनियों ने कहा- राजन्! हम लोग विश्वेदेवहैं। आज से पांचवें दिन माघ का स्नान प्रारंभ हो जाएगा। आज पुत्रदाएकादशी है, जो व्रतकर्ताको पुत्र-सुख प्रदान करती है। तुम इस व्रत का विधिपूर्वक पालन करो। भगवान केशव के प्रसाद से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा।
मुनियों के निर्देशानुसार राजा ने पुत्रदा-एकादशी के दिन उपवास रखकर द्वादशी में व्रत का पारण किया। इस अनुष्ठान के पुण्यफलसे उन्हें सुन्दर-तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ। जो लोग पुत्रदा एकादशी का सविधि व्रत करते हैं,उनके यहां पुत्र जन्म लेता है। यह अनेक भक्तों का अनुभव है। व्रती इस जन्म में पुत्र-सुख को भोगकर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग जाता है। पुत्रदा एकादशी के माहात्म्य को पढने-सुनने से अग्निष्टोमयज्ञ का फल मिलता है।
पुत्रदाएकादशी से प्रारंभ करके इस मंत्र का प्रतिदिन कम से कम पांच माला जप अवश्य करें-
ॐक्लींदेवकीसुतगोविन्द वासुदेव जगत्पते।देहिमेतनयंकृष्ण त्वामहंशरणंगत: क्लींॐ॥
मंत्र के जप के पश्चात् संतानगोपाल स्तोत्र का पाठ करने से अनेक नि:संतानोंको संतान-सुख प्राप्त हुआ है।.......................

पद्मपुराणमें पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले-बडे-बडे यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। इसलिए एकादशी-व्रत अवश्य करना चाहिए। पौषमास के कृष्णपक्ष में सफला नाम की एकादशी होती है। इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी कल्याण करने वाली है। एकादशी समस्त व्रतों में श्रेष्ठ है।
सफलाएकादशी के दिन श्रीहरिके विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए फलों के द्वारा उनका पूजन करें। धूप-दीप से देवदेवेश्वरश्रीहरिकी अर्चना करें। सफला एकादशी के दिन दीप-दान जरूर करें। रात को वैष्णवों के साथ नाम-संकीर्तन करते हुए जगना चाहिए। एकादशी का रात्रि में जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता।
पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें सफला एकादशी के व्रत की कथा विस्तार से वíणत है। इस एकादशी के प्रताप से ही पापाचारी लुम्भकभव-बन्धन से मुक्त हुआ। सफलाएकादशी के दिन भगवान विष्णु को ऋतुफलनिवेदित करें। जो व्यक्ति भक्ति-भाव से एकादशी-व्रत करता है, वह निश्चय ही श्रीहरिका कृपापात्र बन जाता है। एकादशी के माहात्म्य को सुनने से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।