ओस की बूंदे
अभी थी,
अभी नहीं हैं|
ऐसी खुशियाँ
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं|
क्काँयर की कोख से
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बुँदों को ढूंढूँ?
सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?
सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद
हर मौसम में नहीं मिलेगी|
ऊँचाई / अटल बिहारी वाजपेयी
ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
- जमती है सिर्फ बर्फ,
- जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
- मौत की तरह ठंडी होती है।
- खेलती, खिलखिलाती नदी,
- जिसका रूप धारण कर,
- अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
- जमती है सिर्फ बर्फ,
ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
- किन्तु कोई गौरैया,
- वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
- ना कोई थका-मांदा बटोही,
- उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
- किन्तु कोई गौरैया,
सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
- जो जितना ऊँचा,
- उतना एकाकी होता है,
- हर भार को स्वयं ढोता है,
- चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
- मन ही मन रोता है।
- जो जितना ऊँचा,
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
- भीड़ में खो जाना,
- यादों में डूब जाना,
- स्वयं को भूल जाना,
- अस्तित्व को अर्थ,
- जीवन को सुगंध देता है।
- भीड़ में खो जाना,
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
- किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
- कि पाँव तले दूब ही न जमे,
- कोई काँटा न चुभे,
- कोई कली न खिले।
- किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
- मेरे प्रभु!
- मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
- ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
- इतनी रुखाई कभी मत देना।
- मेरे प्रभु!
2 comments:
Hari Hari Doob kavita mein ek shabd kaa prayog hai : क्काँयर
Iss shabd kaa maayne kya hota hai?
This issue was resolved. The correct word should be क्वार 'kwaar'! Kwaar/क्वार is another name for Hindi month आश्विन! The sunshine is very bright duting this month hence it's use in the poem!
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