Monday, June 17, 2013

संपूर्ण बनूँ ..........

तुम गीत कहो , मैं पंक्ति बनू
तुम ग़ज़ल कहो , मैं शब्द बनू

बिन तेरे मेरा वजूद है क्या
हो शब्द तेरे मैं भाव बनू

मेरे प्रियतम , मेरी मंजिल तू
मैं रही , मैं पथिक बनू

तुझको पाकर खुद को ख़ून
सम्पूर्ण बनूँ , सम्पूर्ण बनू


ये इश्क नहीं घर खाला का उसको भी समझना लाजिम है |
हर नक्शे कदम पर दिलबर के इस सर को झुकाना पड़ता है ||



ज़माने से नाज़ अपने उठवानेवाले / आरज़ू लखनवी




ज़माने से नाज़ अपने उठवानेवाले।
मुहब्बत का बोझ आप उठाना पड़ेगा॥

सज़ा तो बजा है, यह अन्धेर कैसा?
ख़ता को भी जो ख़ुद बताना पड़ेगा॥

मुहब्बत नहीं, आग से खेलना है।
लगाना पड़ेगा, बुझाना पड़ेगा॥
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