Monday, June 17, 2013

"ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रणवाय धनधान्यादिपतये धनधान्यसमृद्धि में देहि देहि दापय दापय स्वाहा।"

इस मंत्र का यंत्र के सामने उत्तराभिमुख बैठ कर रोजाना पांच माला का जाप करना चाहिये,खूब संपत्ति आजाये फ़िर भी इस मंत्र को नही छोडना चाहिये,आठवें दिन ३५० मंत्रों की घी की आहुति देनी चाहिये।

यह यंत्र और मंत्र जीवन की सभी श्रेष्ठता को देने वाला,ऐश्वर्य,लक्षमी,दिव्यता,पद प्राप्ति,सुख सौभाग्य,व्यवसाय वृद्धि अष्ट सिद्धि,नव निधि,आर्थिक विकास,सन्तान सुख उत्तम स्वास्थ्य,आयु वृद्धि,और समस्त भौतिक और पराशुख देने में समर्थ है। लेकिन तुलसीदास की इस कहावत को नही भूलना चाहिये,"सकल पदारथ है जग माहीं,भाग्यहीन नर पावत नाहीं",जिनके भाग्य में लक्षमी सुख नही है,वे इसे ढकोसला और न जाने क्या क्या कह कर दरकिनार कर सकते हैं।

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