Thursday, February 3, 2011

ऐसे करें शिव महिम्र स्त्रोत का पाठ......शिव का ऐसा गुणगान देता है ऊंचा पद और मान..........

सावन माह में शिव पूजा-अर्चना मनोवांछित फल और कामनाओं का पूरा करती है। शिव आराधना में पूजा, अभिषेक के साथ अलग-अलग तरह से शिव की प्रसन्नता के उपाय किए जाते हैं। किंतु शिव भक्ति में पूजा-अर्चना के साथ शिव स्त्रोत का पाठ किया जाता है तो वह विशेष फल देने वाला माना जाता है।

शिव महिमा के इन स्त्रोतों में शिव की सेवा और भक्ति भाव से ओतप्रोत है- शिव महिम्र स्त्रोत।

जानते हैं शिव महिम्र स्त्रोत का पाठ करने की सरल विधि -

-शिव की पूजा जैसे पंचोपचार, पंचामृत आदि के दौरान या बाद में शिव महिम्र स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं। अगर इस शिव महिम्र स्त्रोत के पाठ का ज्ञान नहीं हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से इस इस स्त्रोत का पाठ कराया जा सकता है। इससे शिव पूजा के साथ ब्राह्मण को दिए जाने वाले दान-दक्षिणा से दोहरा पुण्य लाभ मिलता है।

- शिव महिम्र स्त्रोत पाठ करने से पहले संकटनाशक या किसी भी गणेश स्त्रोत का पाठ जरुर करें।

- शिव महिम्र स्त्रोत के पाठ के पहले और बाद में हनुमान चालीसा का पाठ करना भी प्रभावकारी माना जाता है।

- इसके बाद अपनी इच्छा और कामनाओं को पूरा करने की प्रार्थना मन ही मन करें और शिव महिम्र स्त्रोत का पाठ शुरु करें।

- जीवन से जुड़ी हर कामना पूरी करने, कष्ट, संताप, परेशानियां और समस्याओं से छुटकारा दिलाने के लिए शिव महिम्र पाठ प्रभावकारी माना गया है।

- शिव महिम्र स्त्रोत पाठ के पूरा होने के बाद विधिवत् पूजा पूरी करें और पाठ में हुई तन, मन और वाणी की गलती के लिए शिव से क्षमा जरुर मांगे।====
धार्मिक दृष्टि से शिव पूजा में आस्था से श्री शिवमहिम्नस्तोत्र स्त्रोत के पाठ से शिव कृपा होने के साथ दरिद्रता का नाश, रोग नाश, कामनापूर्ति और धन प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र का रोज केवल एक, दो या तीन बार भी पाठ करने से जीवन में हर सुख मिल जाता है=त्रोत का सरल अर्थ है - स्तुति करना। स्तुति यानि प्रशंसा या गुणगान करना। देवताओं की भक्ति का एक अंग है देवस्तुति, जो स्त्रोत द्वारा प्रकट की जाती है। इसी कड़ी में शिव की प्रसन्नता के लिए उनके दिव्य गुणों और महिमा का पाठ है - शिव महिम्र स्त्रोत। धर्म शास्त्रों के अनुसार शिवमहिम्र स्त्रोत भगवान शिव के प्रकृति में बसे साकार और निराकार, दृश्य और अदृश्य गुणों का दर्शन कराता है।

भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और आस्था को प्रकट करने वाला यह स्त्रोत अपनी दिव्य शक्ति और बल खो चुके गंधर्वराज पुष्पदन्त द्वारा गाया गया। तब भगवान शिव की प्रसन्नता से पुष्पदंत ने फिर से अपनी खोई शक्तियां पाई। इस प्रकार इस स्त्रोत के रचनाकार गंधर्वराज पुष्पदंत है। यह शिव स्त्रोत महिम्र: पद से शुरु होता है। इसलिए यह शिव महिम्र: स्त्रोत कहलाता है। एक दूसरी धार्मिक मान्यता के अनुसार यह स्त्रोत स्वयं भगवान शिव के द्वारा रचा गया। माना जाता है कि शिवभक्ति से जब गंधर्वराज पुष्पदंत ने अपनी दिव्य शक्तियों को पा लिया तब उसे घमंड हो गया। तब उसके अहंकार को तोडऩे के लिए भगवान शिव ने शिव महिम्र स्त्रोत को अपने गण भृंगी के दांतों पर लिखा बताया। जिससे गंधर्वराज को एहसास हो गया कि भगवान शिव ने ही उनको माध्यम बनाकर यह स्त्रोत जगत कल्याण के लिए प्रगट किया है।

शिव महिम्र स्त्रोत पाठ रचना की इन मान्यताओं में यही संदेश छुपे हैं कि जीवन में विपरीत हालात में आत्मविश्वास न खोएं, बल्कि अपने गुणों और शक्तियों को पहचानें, जगाएं और उसका सही उपयोग कर सफलता पाएं। चाहे वह शक्ति ज्ञान की हो, शरीर की हो या फिर धन की। इनके साथ धैर्य, संयम, अहं का त्याग और प्राकृतिक व्यवस्थाओं के साथ संतुलन मान-सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाता है। ठीक उसी तरह जिस तरह गंधर्वराज पुष्पदंत ने अपने बल को पाया। लोक आस्था है कि इस संसार के हर कंकर में बसे भगवान शंकर भी सहनशीलता, उदारता और संयम के ही प्रतीक है। यह सारे गुण भी कामयाबी के लिए हर व्यक्ति में होना जरुरी है। इस तरह शिव महिम्र स्त्रोत आत्मविश्वास, मनोबल, आत्मसम्मान के जागरण और सफलता के सूत्रों से भरा शिवभक्ति का स्त्रोत है।

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