Thursday, February 17, 2011

वाल्मीकि , राम के समकालीन थे ...........,हनुमान ,भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी पूजे जाते हैं .....

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वं गमः शाश्वती शमा,
यत्क्रौंच मिथुनादेकं वधीः काममोहितम्।।

(अरे बहेलिये, तू ने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी।)

उनकी यह करुणा अपने चरम सीमा तक पहुँच गई और उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य “रामायण” (जिसे कि “वाल्मीकि रामायण” के नाम से भी जाना जाता है) की रचना कर डाली और “आदिकवि वाल्मीकि” के नाम से अमर हो गये।

महाकाव्य “रामायण” में महर्षि वाल्मीकि ने अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी प्रकाण्ड पण्डित थे।

अपने वनवास काल के मध्य “राम” वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में भी गये थेः

देखत बन सर सैल सुहाए।
बालमीक आश्रम प्रभु आए॥

तथा जब “राम” ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया तब वाल्मीकि ने ही सीता को प्रश्रय दिया था।

उपरोक्त उद्धरणों से सिद्ध है कि वाल्मीकि “राम” के समकालीन थे तथा उनके जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं का पूर्णरूपेण ज्ञान वाल्मीकि ऋषि को था। उन्हें “राम” का चरित्र को इतना महान समझा कि उनके चरित्र को आधार मान कर अपने महाकाव्य “रामायण” की रचना की।
!!!۞!!! ॥ॐ श्री राम ॥ !!!۞!!!

॥ॐ श्री हनुमते नमः ॥ ..............
हनुमान जी की उपासना भारत में कोने-कोने से लेकर सम्पूर्ण एशिया (जावा-सुमित्रा’ लंका, थाई, मारीशस, बर्मा अफगानिस्तान, जापान आदि) से लेकर यूरोप व समस्त विश्व में होती है।
सप्तऋषि जिन्हें वरदान प्राप्त है कि चिरंजीवी रहेंगे- (अश्ववत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, शक, कृपाचार्य परशुराम) इनमें से एक हनुमान है। तंत्र शास्त्र के अनुसार सात करोड़ राम मंत्रों का जाप करने के बाद कहीं साधकों को हनुमान दिखाई देते हैं। हनुमान वेग में वायु देवता तथा गति में गरुड़ देवता के सक्षम हैं। भगवान के उत्तर दिशा के पार्षद कुबेर की गदा इन पर रहती है जिसमें अधर्म करने को दण्ड देने के अधिकारी हैं। इनकी गदा संग्राम में विजय दिलाने वाली हैं अतः साधकों को धर्मच्युत व्यवहार के लिए मारुति की गदा का भी ध्यान व पूजन अभीष्ट है। यदि साधक स्वयं (अनुचित) मार्ग से हनुमान की प्रार्थना करता है तो कभी साधना सफल नहीं होगी। यदि साधक मृत्युतुल्य कष्ट से ग्रस्त हो, तो मंगलमूर्ति का ध्यान हाथ में संजीवनी का पहाड़ लिये, साथ में सुषेण वैद्य का भी ध्यान करना चाहिये।

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