Wednesday, February 2, 2011

ऐसी कछुआ चाल सीखें शिवालय में...... क्यों नंदी का मुख शिव की ओर?

शिव मंदिर में शिवलिंग सहित हर देव मूर्ति या चिन्ह जीवन से जुड़े कुछ न कुछ संकेत जरुर देते हैं। बस जरुरत है इन देव मूर्तियों में छुपे संकेतों को समझने और उनको अपना मार्गदर्शक बनाने की। जिससे देव दर्शन सार्थक बन जाए। शिवालय में जाने पर मूर्तियों के क्रम में नंदी के बाद हम कछुए की मूर्ति के दर्शन करते हैं। यह कछुआ शिव की ओर बढ़ रहा होता है, न कि नंदी की ओर। यह कछुआ शिव की ओर ही क्यों सरकता है? जानते है इसमें छुपे संदेशों को -

जिस तरह नंदी हमारे शरीर को परोपकार, संयम और धर्म आचरण के लिए प्रेरित करने वाला माना गया है। ठीक उसी तरह शिव मंदिर में कछुआ मन को संयम, संतुलन और सही दिशा में गति सिखाने वाला माना गया है। कछुए के कवच की तरह हमारे मन को भी हमेशा शुद्ध और पवित्र कार्य करने के लिए ही मजबूत यानि दृढ़ संकल्पित बनाना चाहिए। मन को कर्म से दूर कर मारना नहीं, बल्कि हमेशा अच्छे कार्य करने के लिए जगाना चाहिए। खासतौर पर स्वार्थ से दूर होकर दूसरों की भलाई, दु:ख और पीड़ा को दूर करने के लिए तत्पर रखना चाहिए यानि मन की गति बनाए रखना जरुरी है।
सरल शब्दों में मन स्वार्थ और शारीरिक सुखों के विचारों में न डूबा रहे, बल्कि मन को साधने के लिए दूसरों के लिए भावना, संवेदना रखकर कल्याण के भाव रखना भी जरुरी है। यही कारण है कि कछुआ मंगलकारी देव शिव की ओर जाता है, न कि नंदी की ओर, जो शरीर के द्वारा आत्म सुख की ओर जाने का प्रतीक है। आसान अर्थ में नंदी शारीरिक कर्म का और कछुआ मानसिक चिंतन का प्रेरक है।
इसलिए अध्यात्म का आनंद पाने के लिए मानसिक चिंतन को सही दिशा देना चाहिए और यह करने के लिए धर्म, अध्यात्म और शिव भक्ति से जुड़ें।............हम अनेक बार शिव दर्शन के लिए शिव मंदिर जाते हैं। वहां जाकर हम भक्ति भाव और धार्मिक विधि-विधान से शिव पूजा भी करते हैं। शिव मंदिर में शिव परिवार के साथ उनके वाहन सहित दर्शन होते हैं। लेकिन क्या कभी हम धर्म भाव से दूर होकर यह सोचते हैं कि शिव मंदिर में विराजित यह मूर्तियां व्यावहारिक जीवन की नजर से क्या संदेश देती है। डालते हैं इसी पर एक नजर -
शिव मंदिर में जाते ही सबसे पहले हमें शिव के वाहन नंदी के दर्शन होते हैं। नंदी के बारे में यह भी माना जाता है कि यह पुरुषार्थ का प्रतीक है। यह तर्क ठीक है, किंतु हर विषय और वस्तु का संबंध अंतत: पुरुषार्थ से ही जुड़ता है। शिव मंदिर में नंदी की विशेषता होती है कि उसका मुख शिवलिंग की ओर होता है। आखिर नंदी शिवलिंग की ओर ही मुख करके क्यों बैठा होता है? जानते हैं नंदी की इसी मुद्रा का व्यावहारिक जीवन के नजरिए से क्या महत्व है -
नंदी का संदेश है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है। ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है। जैसे नंदी की नजर शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी नजर भी आत्मा की ओर हो। इस बात का सरल अर्थ यही है कि हर व्यक्ति को अपने मानसिक, व्यावहारिक और वाणी के गुण-दोषों की परख करते रहना चाहिए। मन में हमेशा मंगल और कल्याण करने वाले देवता शिव की भांति दूसरों के हित, परोपकार और भलाई का भाव रखना चाहिए। नंदी का इशारा यही होता है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है। इसे ही आम भाषा में मन का साफ होना कहते हैं। जिससे शरीर भी स्वस्थ होता है और शरीर के निरोग रहने पर ही मन भी शांत, स्थिर और दृढ़ संकल्प से भरा होता है। इस प्रकार संतुलित शरीर और मन ही हर कार्य और लक्ष्य में सफलता के करीब ले जाता है।


इस तरह अब जब भी मंदिर में जाएं शिव के साथ नंदी की पूजा कर शिव के कल्याण भाव को मन में रखकर वापस आएं। इसी को शिवतत्व को जीवन में उतारना कहा जाता हैं।

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