Sunday, February 6, 2011

भगवान को ऐसे फूल न चढा़एं..........दैनिक पूजा में इस मंत्र से करें देव आवाहन......

कहते हैं भगवान तो भक्त के वैभव, धन या सौंदर्य से नहीं बल्कि भावनाओं से प्रसन्न होते हैं। किंतु इसका मतलब यह भी नहीं है कि भक्त इस बात की आड़ लेकर भक्ति की गरिमा या मर्यादा को भूल जाएं।

देव उपासना या भक्ति का ही एक अंग है, भगवान की पूजा में पुष्प या फूल चढ़ाना। आस्था या जानकारी के बिना हर कोई नियमित रूप से जो फूल हो देवता को चढ़ा देते हैं। किंतु शास्त्रों के मुताबिक भगवान को नियत रंग रूप के फूलों को चढ़ाने कुछ जरूरी नियम हैं -

- कीड़े लगे फूल, बासी फूल भगवान को न चढ़ाएं।

- बिखरे या पेड़ से जमीन पर गिरे फूल भी देव पूजा में चढ़ाएं।

- कली या अधखिले फूल भी अर्पित न करें।

- पेड़ या पौधों से तोड़कर लाए ताजे फूल देव पूजा में चढ़ाएं।

- भगवान पर चढ़ा, उल्टे हाथ में रखा, धोती के पल्ले में बांधकर लाया और पानी से धोया फूल भी न चढ़ाएं।

- पौधे पर जिस स्थिति में फूल खिलता है, उसी स्थिति में सीधे हाथ से भगवान को चढ़ाएं।

- कुशा से मूर्ति पर जल न छिड़के।

- फूलों को किसी टोकरी में तोड़कर लाएं।

- सूखे फूल न चढ़ाएं।........

देव उपासना का अंग है - देव आवाहन। आवाहन का मूल भाव होता है - सामने या पास लाना। इस कर्म द्वारा भगवान या इष्ट को आमंत्रित कर साक्षात उपस्थित होने की प्रार्थना की जाती है।

इस प्रार्थना में देवताओं को संदेश दिया जाता है कि वह अपनी सारी शक्तियों के साथ आकर देव प्रतिमा में वास करें और आत्म व आध्यात्मिक बल प्रदान करें। इस तरह देव आवाहन में सत्कार के भाव मन में वैसी ही खुशी और शांति देते हैं, जैसे घर आए किसी प्रियजन का स्वागत-सत्कार कर हम महसूस करते हैं।

आवाहन की क्रिया से भक्त भगवान के प्रति समर्पण और आस्था प्रकट करता है। यही नहीं यह भक्त के मन में यह भरोसा पैदा होता है कि देवालय में देव शक्ति प्रवेश कर चुकी है। इस तरह भक्त का मन पूरी एकाग्रता और आनंद से देव पूजा में लगा रहता है। ..................

देव आवाहन के लिए शास्त्रों में मंत्र बताया गया है। जानते हैं यह देव आवाहन मंत्र -

आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव।

यावत्पूजां करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।।
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