Friday, February 18, 2011

शिव का ही पूजन लिंग रूप में क्यों?

महात्मा सूतजी प्रयाग में एकत्रित हुए संतजनों को शिवमहापुराण की कथा सुना रहे हैं। संतजन सूतजी से पूछते हैं कि सभी देवताओं का पूजन मूर्ति रूप में ही किया जाता है परंतु एकमात्र भगवान शिव का ही पूजन मूर्ति व लिंग दोनों रुपों में किया जाता है क्यों?

तब सूतजी कहते हैं कि एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल (निराकार) कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण इन्हें सकल (आकार सहित) भी कहा गया है। इस प्रकार भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो निष्कल व सकल दोनों हैं। शिव के निष्कल अर्थात निराकार स्वरूप का ही पूजन लिंग रूप में किया जाता है। इसी तरह शिव के सकल अर्थात साकार स्वरूप का पूजन मूर्ति के रूप में किया जाता है। निष्कल व सकल(समस्त अंग आकारसहित साकार व अंग-आकार स सर्वथा रहित निराकार) रूप होने से ही वे ब्रह्म शब्द से कहे जाने वाले परमात्मा हैं। यही कारण है कि एकमात्र शिव का पूजन लिंग व मूर्ति के रूप में किया जाता है। शिव से भिन्न जो दूसरे देवता हैं, वे साक्षात ब्रह्म नहीं है इसलिए उनकी पूजा मूर्ति रूप में नहीं होती........

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मंगरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुध्याय दिगम्बराय
तस्मै न काराय नमः शिवाय ।।
मंदा किनी सलिल चन्दन चर्चिताय
नन्दीश्वर प्रमथ नाथ महेश्वराय।
मंदार पुष्प बहु पुष्प सुपूजिताय
तस्मै म काराय नमः शिवाय ।।
शिवाय गौरी बदनाब्जवृन्द
सूर्याय दक्षा ध्वरनाशकाय।
श्री नील कंठाय वृषध्वजाय
तस्मै शि काराय नमः शिवाय ।।
वसिष्ठ कुम्भो द्भव गौतमार्य-
मुनीन्द्र देवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्क वैश्वा नरलोचलाय
तस्मै व काराय नमः शिवाय।।
यक्षस्व रूपाय जटाधराय
पिनाक हस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै य काराय नमः शिवाय ।।
पंचाक्षर मिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिव लोक म़वा प्नोति शिवेन सः मोदते।।

No comments: