Thursday, February 17, 2011

रामचरितमानस के मंत्र ........राम राम राम जय राम ......जय श्री हनुमान .......

१॰ विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”

२॰ संकट-नाश के लिये
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”

३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”

४॰ विघ्न शांति के लिये
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”

५॰ खेद नाश के लिये
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”

६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”

७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”

८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”

९॰ विष नाश के लिये
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”

१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।.............

महिमा राम की राम राम राम जय राम .......
एक दिन देखी छवि राम की |जानी महिमा रघुपति बाण की ||देख राम तन हुआ आचरज |ऐसी माया रचते करुणाकर ||कोमल तन कोमल मुख मंडल |कैसे करते युद्ध भयंकर ||गेरू वस्त्र वनवासी प्रभु के, श्याम शरीर तेज है मुख पे |क्षत्रिय फिर भी कही ऐसा हुआ न होगा युगों युगों मैं ||नयन कमल से ये सिय वर के |भिन्न नही है शिव त्रिनेत्र से ||नही कोई सीमा राम शौर्य की |एक दिन देखी छवि राम की ||सौम्य आचरण वाणी मधुकर |अनुशासित है जीवन नित क्षण ||धर्म कहे लेकिन जब युद्ध कर |धर्म परायण है श्री रघुवर ||कोमल कर हनुमत सिर पर है |शिव धनु तोड़न वाले प्रभु है ||मै मूरख हू समझ ना पाया |जगत तो है बस राम कि माया ||श्वास मेरी हर राम दान दी |एक दिन देखी छवि राम की ||पित्र वचन का मान रख लिया |आये तो वन स्वर्ग बन गया ||स्वाद लिया झूठे बेरों का |अंत किया बहु भट दुष्टों का ||पाकर जिनका ही बल माया रचती है ब्रह्माण्ड निकाया |गले लगाकर उन्ही प्रभु ने केवट का भी मान बढ़ाया ||दश आनन् के संघारक है |कोमल करुणामयी तारक है ||राम कृपा से महिमा जानी |एक दिन देखी छवि राम की |||| सीताराम ||...

जय श्री हनुमान .......
हनुमान अष्टसिद्धि एवं नवनिधि के दाता हैं।
श्रीहनुमान आजन्म नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं। तेज, धैर्य, यश, दक्षता, शक्ति, विनय,नीति,
पुरुषार्थ, पराक्रम और बुद्धि जैसे गुण उनमें नित्य विद्यमान हैं। बल
अन्तक-काल के समान है, तभी कोई शत्रु सम्मुख टिक नहीं सकता। शरीर वज्र के
समान सुदृढ (वज्रांगी) है और गति गरुड के समान तीव्र। वे सभी के लिए अजेय
व सभी आयुधों से अवध्य हैं। भक्ति के आचार्य, संगीत-शास्त्र के प्रवर्तक,
चारों वेद एवं छह वेदांग शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और
ज्योतिष) के मर्मज्ञ हैं।.........

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