Thursday, February 17, 2011

शेषनाग पर क्यों सोते हैं भगवान विष्णु...?

शेषनाग पर क्यों सोते हैं भगवान विष्णु...?
हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु को जगत का पालन करने वाले देवता माना जाता है। भगवान विष्णु का स्वरूप शांत, आनंदमयी, कोमल, सुंदर यानि सात्विक बताया गया है। वहीं दूसरी ओर भगवान विष्णु के भयानक और कालस्वरूप शेषनाग पर आनंद मुद्रा में शयन करते हुए भी दर्शन किए जा सकते हैं।भगवान विष्णु के इसी स्वरूप के लिए शास्त्रों में लिखा गया है -शान्ताकारं भुजगशयनं यानि शांतिस्वरूप और भुजंग यानि शेषनाग पर शयन करने वाले देवता भगवान विष्णु।

साधारण नजरिए से यह अनूठा देव स्वरूप अचंभित करता है कि काल के साये में रहकर भी देवता बिना किसी बैचेनी के शयन करते हैं। किंतु भगवान विष्णु के इस रूप में मानव जीवन से जुड़ा छुपा संदेश है - जिंदगी का हर पल कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है। इनमें पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक दायित्व अहम होते हैं। किंतु इन दायित्वों को पूरा करने के साथ ही अनेक समस्याओं, परेशानियों, कष्ट, मुसीबतों का सिलसिला भी चलता रहता है, जो कालरूपी नाग की तरह भय, बेचैनी और चिन्ताएं पैदा करता है। जिनसे कईं मौकों पर व्यक्ति टूटकर बिखर भी जाता है।भगवान विष्णु का शांत स्वरूप यही कहता है कि ऐसे बुरे वक्त में संयम, धीरज के साथ मजबूत दिल और ठंडा दिमाग रखकर जिंदगी की तमाम मुश्किलों पर काबू पाया जा सकता है। तभी विपरीत समय भी आपके अनुकूल हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति सही मायनों में पुरूषार्थी कहलाएगा।इस तरह विपरीत हालातों में भी शांत, स्थिर, निर्भय व निश्चिंत मन और मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन यानि जिम्मेदारियों को पूरा करना ही विष्णु के भुजंग या शेषनाग पर शयन का प्रतीक है।..............

नील सरोरुह स्याम तरून अरुन बारिज नयन करहु सो मम उर धाम सदा क्षीर सागर सयन . ॐ नमो नारायणाय....

जिससे अंहकार नहीं होता उससे ना मान की फ़िक्र होती है ना अपमान की और जब इंसान मान और अपमान के बारे में सोचने लगता है तो समझ लेना चाहिए की अंहकार रूपी सांप उसके दिल में कुंडली मार के बैठ चूका होता है . मान और अपमान दोनों इंसान को बहकाते हैं , इंसान के दिल में अपने बारे में गलत फैमेयाँ पैदा करते हैं . जब कोई इंसान झुकता तो उसे अपना मान समझते है और जब कोई झुकता नहीं तो उसे अपना अपमान समझते हैं . इसलिए संत महात्मा कहते हैं की इंसान को हमेशा विनम्र होना चाहिए , हमेशा मालिक की भक्ति में मन को लगाये रखना चाहिए जिस से इंसान के दिल पर अंहकार हावी ना हो . फिर इंसान के दिल में अपने बारे में कोई गलत फैमी नहीं होती , ना उसे मान की फ़िक्र होती है ना अपमान की और ना ही वो किसी का अपमान करता है , उसे हर किसी में मालिक नज़र आता है , हर किसी के साथ विनम्र होता है .........

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