'श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव' यह महामंत्र है। अर्थ के ज्ञान सहित इस मंत्र का जाप करें।
श्रीकृष्ण का अर्थ है मन को आकर्षित करने वाले।
गोविन्द का अर्थ है इन्द्रियों के रक्षक भगवान्।
हरे का अर्थ है दुःखहर्ता।
मुरारे का अर्थ है मुर नामक राक्षस के विजेता।
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नारायण का अर्थ है मैं नर हूँ, आप नारायण हैं।
वासुदेव का अर्थ है प्राण। मेरे प्राणों की रक्षा करें। मैंने अपना मन आपको अर्पित कर दिया है। ब्रह्मनिष्ठा ऐसी अव्वल होनी चाहिए कि अन्य विषयों में मन ही न हो। मनुष्य विषयों में आनंद खोजता है किंतु मिलता नहीं क्योंकि वहाँ सुख है ही नहीं। जिसे हम सुख मानते हैं वह है सुखाभास।
प्रभु के भजन में वज्र के समान अचल निष्ठा रखें। मानव शरीर की प्राप्ति भोगोपभोग के लिए नहीं अपितु इसकी प्राप्ति तो भगवत् भजन द्वारा प्रभु के प्राप्ति के लिए है। शरीर के नाशवान होने पर भी मनुष्य जन्म दुर्लभ है। कारण कि मनुष्य जन्म इच्छित वस्तु दे सकता है। इस अनित्य और नाशवान शरीर से नित्य वस्तु भगवान की प्राप्ति हो सकती है।
यह मानव शरीर बड़ा ही कीमती है। कई बार जन्म-मरण की पीड़ा सहता हुआ जीव इस शरीर में आया है और सब पशु-पक्षी वाले शरीरों में भोग ही भोग सकता है। प्रभु प्राप्ति के लिए कर्म नहीं कर सकता।
ईश्वर नित्य है, शरीर अनित्य किंतु इसी अनित्य से ही नित्य की प्राप्ति हो सकती है। अतः मानव देह की बड़ी महिमा है। जब तक यह शरीर रूपी गृह स्वस्थ है, जब तक वृद्धावस्था का आक्रमण नहीं हो पाया है।
जब तक इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई है, आयुष्य का क्षय भी नहीं हुआ है समझदार व्यक्ति को चाहिए कि तब तक वह अपने आत्मकल्याण का प्रयत्न कर ले।
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