माघी अमावस्या को प्रात: स्नान के बाद ब्रह्मदेव और गायत्री का पूजन करें। गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, पलंग, दर्पण आदि का मंत्रोपचार के साथ ब्राह्मण को दान करें। पवित्र भाव से ब्राह्मण एवं परिजनों के साथ भोजन करें। इस दिन पीपल में आघ्र्य देकर परिक्रमा करें और दीप दान दें। इस दिन जिनके लिए व्रत करना संभव नहीं हो वह मीठा भोजन करें।
माघ कृष्ण अमावस्या को रविवार, व्यतीपात और श्रवण हो तो उसे अर्धोदय योग कहते हैं। पुराण कहते हैं कि इस योग में सभी स्थानों पर नदी का जल गंगाजल के समान हो जाता है। सतयुग में इस योग के अवसर पर वशिष्ठ ने, त्रेतायुग में भगवान राम ने, द्वापर युग में धर्मराज ने अनेक दान धर्म किये थे।
चूंकि चन्द्रमा को मन का स्वामी माना गया है और अमावस्या को चन्द्रदर्शन नहीं होते हैं। जिससे इस दिन मन:स्थिति कमजोर होती है। अत: मौन व्रत कर मन को संयम में रखते हुए दान-पुण्य का विधान बनाया गया है।
Wednesday, February 2, 2011
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