राम राम जय राम राम
राम जय राम राम
राम नाम जीवन का सार |
राम राम जय राम राम ||
सिया प्रिय है राम राम |
बजरंग स्वामी राम राम ||
भरताग्रज है राम राम |
दशरथ कौशल्या के बाल ||
राम राम जय राम राम
राम राम जय राम राम
जिनकी कीरति चारो धाम |
जीवन जिनका था निष्काम ||
मर्यादा है राम राम |
पुरुषोत्तम है राम राम ||
प्रत्यन्चा धनु की है राम |
धरा शोक नाशक है राम ||
राम राम जय राम राम
राम राम जय राम राम
समझो इनको ये नहीं, कर्मकाण्ड और अंधविश्वास |
ये तो हैं वो सत्य रूप, करुण भाव और क्षमा स्वरुप ||
राम नहीं बसते हैं मंदिर की सुन्दर मूरत में प्यारे |
राम तो हैं बूढी शबरी के झूठें बेरों को खाने वाले ||
सेवक, प्रजा प्रिय हैं राम राम |
वीर धर्म रक्षक हैं राम ||
राम राम जय राम राम
राम राम जय राम राम
राम नहीं पाओगे माला जप जप कर महलों में तुम |
लेकिन राम स्वयं आवेंगे जो मानव बन जाओगे तुम ||
राम राम वन विचरक |
राम दशानन काल राम ||
राम राम शिव भक्त राम |
सीय पति श्री राम राम ||
राम राम जय राम राम
राम राम जय राम राम
हनुमत स्वामी राम राम |
सत गुण विष्णु अंश राम ||
राम राम जय राम राम
मेरे प्रेरक राम राम
|| सीताराम ||
!!!۞!!! ॥ॐ श्री राम ॥ !!!۞!!!
!!!۞!!! ॥ॐ श्री हनुमते नमः ॥ !!!۞!!!
परम सुहावन अति मनभावन निर्मल सर सुखदाई । चलो मन जाके नहाई ।।
अतिसय पावन शिव मनभावन गिरजहु रहीं लुभाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सात रुचिर सोपान मनोहर राम भगति पथ भाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सियाराम यश सुधा जल सोहै प्रभु महिमा गहराई । चलो मन जाके नहाई ।।
देखे ज्ञान नयन सुख उपजे रामचरन रति दाई । चलो मन जाके नहाई ।।
काम क्रोध मद मोह मिटाए ज्ञान विराग बढ़ाई । चलो मन जाके नहाई ।।
पाप दोष दुःख ताप मिटाए अद्भुत जल सितलाई । चलो मन जाके नहाई ।।
प्रेमसहित अवगाहत येह सर सब कलि-कलुष नसाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सादर मज्जन-पान किये से भवबाधा मिट जाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सुंदर-सुगम मुद-मंगलदायक अगम किये जड़ताई । चलो मन जाके नहाई ।।
श्रीरामचरितमानस यह सरवर तुलसी जग सुगम बनाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सुजन-सुसाधु जानत सर महिमा संतोष कहाँ लगि गाई । चलो मन जाके नहाई ।।....
अतिसय पावन शिव मनभावन गिरजहु रहीं लुभाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सात रुचिर सोपान मनोहर राम भगति पथ भाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सियाराम यश सुधा जल सोहै प्रभु महिमा गहराई । चलो मन जाके नहाई ।।
देखे ज्ञान नयन सुख उपजे रामचरन रति दाई । चलो मन जाके नहाई ।।
काम क्रोध मद मोह मिटाए ज्ञान विराग बढ़ाई । चलो मन जाके नहाई ।।
पाप दोष दुःख ताप मिटाए अद्भुत जल सितलाई । चलो मन जाके नहाई ।।
प्रेमसहित अवगाहत येह सर सब कलि-कलुष नसाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सादर मज्जन-पान किये से भवबाधा मिट जाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सुंदर-सुगम मुद-मंगलदायक अगम किये जड़ताई । चलो मन जाके नहाई ।।
श्रीरामचरितमानस यह सरवर तुलसी जग सुगम बनाई । चलो मन जाके नहाई ।।
सुजन-सुसाधु जानत सर महिमा संतोष कहाँ लगि गाई । चलो मन जाके नहाई ।।....
रोम रोम में रमा हुआ है,
मेरा राम रमैया तू,
सकल सृष्टि का सिरजनहारा,
राम मेरा रखवैया तू,
तू ही तू, तू ही तू, ...
डाल डाल में, पात पात में,
मानवता के हर जमात में,
हर मज़ेहब, हर जात पात में
एक तू ही है, तू ही तू,
तू ही तू, तू ही तू, ...
सागर का ख़ारा जल तू है,
बादल में, हिम कण में तू है,
गंगा का पावन जल तू है,
रूप अनेक, एक है तू,
तू ही तू, तू ही तू, ...
चपल पवन के स्वर में तू है,
पंछी के कलरव में तू है,
भौरों के गुंजन में तू है ,
हर स्वर में ईश्वर है तू,
तू ही तू, तू ही तू, ...
'तन है तेरा, मन है तेरा,
प्राण हैं तेरे, जीवन तेरा,
सब हैं तेरे, सब है तेरा',
पर मेरा इक तू ही तू,तू ही तू, तू ही तू, ...
आरती करिये सियावर की, अवधपति रघुवर सुंदर की
जगत में लीला विस्तारी कमल दल लोचन हितकारी ,
मुख पर अलके घुंघराली, मुकुट छवि लगती है प्यारी ,
मृदुल जब मुख मुस्काते है , छीन कर मन ले जाते है ,
नवल रघुवीर, हरे मन पीर, बड़े है वीर,
जयति जय करुणा सागर की
अवधपति रघुवर सुंदर की १
गले में हीरो का है हार, पीतपट ओढत राज दुलार ,
गगन की चितवन पर बलिहार किया है हमने तन मन वार,
चरण है कोमल कमल विशाल, छबीले दशरथ के है लाल ,
सलोने श्याम, नयन अभिराम, पूर्ण सब काम ,
सरितु है सकल चराचर की , अवधपति रघुवर सुंदर की ,
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की २
अहिल्या गौतम की दारा, नाथ ने क्षण में निस्तारा ,
जटायु शबरी को तारा, नाथ केवट को उद्धारा ,
शरण में कपि भुशुण्डी आये, विभीषण अभय दान पाये
मान मद त्याग, मोह से भाग, किया अनुराग ,
कृपा है रघुवर जलधर की, अवधपति रघुवर सुंदर की
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की ३
अधम जब खल बढ़ जाते है, नाथ तब जग में आते हैं
विविध लीला दर्शाते है , धर्म की लाज बचाते हैं
बसों नयनो में श्री रघुनाथ मातुश्री जनकनंदिनी साथ ,
मनुज अवतार लिए हरबार, प्रेम विस्तार,
विनय है लक्ष्मण अनुचर की , अवधपति रघुवर सुंदर की
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की ४
सियावर रामचंद्र की जय..........
जगत में लीला विस्तारी कमल दल लोचन हितकारी ,
मुख पर अलके घुंघराली, मुकुट छवि लगती है प्यारी ,
मृदुल जब मुख मुस्काते है , छीन कर मन ले जाते है ,
नवल रघुवीर, हरे मन पीर, बड़े है वीर,
जयति जय करुणा सागर की
अवधपति रघुवर सुंदर की १
गले में हीरो का है हार, पीतपट ओढत राज दुलार ,
गगन की चितवन पर बलिहार किया है हमने तन मन वार,
चरण है कोमल कमल विशाल, छबीले दशरथ के है लाल ,
सलोने श्याम, नयन अभिराम, पूर्ण सब काम ,
सरितु है सकल चराचर की , अवधपति रघुवर सुंदर की ,
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की २
अहिल्या गौतम की दारा, नाथ ने क्षण में निस्तारा ,
जटायु शबरी को तारा, नाथ केवट को उद्धारा ,
शरण में कपि भुशुण्डी आये, विभीषण अभय दान पाये
मान मद त्याग, मोह से भाग, किया अनुराग ,
कृपा है रघुवर जलधर की, अवधपति रघुवर सुंदर की
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की ३
अधम जब खल बढ़ जाते है, नाथ तब जग में आते हैं
विविध लीला दर्शाते है , धर्म की लाज बचाते हैं
बसों नयनो में श्री रघुनाथ मातुश्री जनकनंदिनी साथ ,
मनुज अवतार लिए हरबार, प्रेम विस्तार,
विनय है लक्ष्मण अनुचर की , अवधपति रघुवर सुंदर की
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की ४
सियावर रामचंद्र की जय..........
मंगलवार और शनिवार का दिन भी श्री हनुमान उपासना के विशेष दिन
होते हैं। श्री हनुमान की उपासना बल, बुद्धि और विद्या के साथ सुख-समृद्धि,
शासकीय पद, सम्मान और पुत्र कामना भी पूरी करता है।
मंगलवार की आरती
मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता ।
हाथ व्रज और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे ।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन ।
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना ।
काल अकाल जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी ।
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी ।
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे ।
शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे ।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै ।
सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना ।
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा ।
रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा ।
पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता ।
हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए ।
रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुख दरिद्र बंधन प्रकटाने ।
तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा ।
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुख स्वप्न विनाशा ।
शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे ।
विपति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा ।
मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी ।
श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई ।
होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई ।
मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता ।
हाथ व्रज और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे ।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन ।
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना ।
काल अकाल जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी ।
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी ।
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे ।
शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे ।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै ।
सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना ।
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा ।
रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा ।
पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता ।
हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए ।
रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुख दरिद्र बंधन प्रकटाने ।
तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा ।
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुख स्वप्न विनाशा ।
शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे ।
विपति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा ।
मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी ।
श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई ।
होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई ।
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