Monday, February 14, 2011

निश्चय प्रेम प्रतिति ते , विनय करें सन्मान । तेहि के कारज सकल शुभ , सिद्ध करें हनुमान ॥

देखा मैंने राम-चरित तो समझ आने लगा है रहस्य जीवन का,
देखा मैंने राम-जीवन तो सहज होता लग रहा है पथ जीवन का,
कौन होता है इतना कर्म-मयी जितने हुए प्रभु राम मेरे,
कौन है इतना धीर-अविचल जो सहते चले गये दुःख घनेरे,
किसने देखे थे अश्रु मेरे राम के,मिला जब कंटक सा जीवन,
किसने देखे त्याग राम के जब छोडा अयोध्या सा उपवन,
क्या है कोई इतना सामर्थ्यवान जितने हुए प्रभु राम मेरे,
आत्मा स्वरुप सीता का विरह सहा प्रभु राम ने मेरे,
राजा होते हुए भी रहे आजीवन तपस्वी...ऐसी अद्भुत छवि है मेरे प्रभु राम की,
अब सोचता हूँ के क्या है मेरा दुःख और क्या है मेरा त्याग.
चरणों की धुल की भान्ति हूँ, पाया मैंने ऐसा जो जीवन,
ऋणी हूँ प्रभु राम की जो मिला मुझे ऐसा सौभाग्य,
उन्ही चरणों का अनुसरण करने का मिला है अवसर,
किसका होगा ऐसा स्वर्णिम भाग्य !!!!۞!!!

!!!۞!!! जय जय श्री सीता राम जी की !!!۞!!

मानस के मन्त्र

१॰ प्रभु की कृपा पाने का मन्त्र
“मूक होई वाचाल, पंगु चढ़ई गिरिवर गहन।
जासु कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल-दहन।।”

विधि-प्रभु राम की पूजा करके गुरूवार के दिन से कमलगट्टे की माला पर २१ दिन तक प्रातः और सांय नित्य एक माला (१०८ बार) जप करें।
लाभ-प्रभु की कृपा प्राप्त होती है। दुर्भाग्य का अन्त हो जाता है।

२॰ रामजी की अनुकम्पा पाने का मन्त्र
“बन्दउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।”

विधि-रविवार के दिन से रुद्राक्ष की माला पर १००० बार प्रतिदिन ४० दिन तक जप करें।
लाभ- निष्काम भक्तों के लिये प्रभु श्रीराम की अनुकम्पा पाने का अमोघ मन्त्र है।

३॰ हनुमान जी की कृपा पाने का मन्त्र
“प्रनउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।”

विधि- भगवान् हनुमानजी की सिन्दूर युक्त प्रतिमा की पूजा करके लाल चन्दन की माला से मंगलवार से प्रारम्भ करके २१ दिन तक नित्य १००० जप करें।
लाभ- हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अला-बला, किये-कराये अभिचार का अन्त होता है।

४॰ वशीकरण के लिये मन्त्र
“जो कह रामु लखनु बैदेही। हिंकरि हिंकरि हित हेरहिं तेहि।।”

विधि- सूर्यग्रहण के समय पूर्ण ‘पर्वकाल’ के दौरान इस मन्त्र को जपता रहे, तो मन्त्र सिद्ध हो जायेगा। इसके पश्चात् जब भी आवश्यकता हो इस मन्त्र को सात बार पढ़ कर गोरोचन का तिलक लगा लें।
लाभ- इस प्रकार करने से वशीकरण होता है।

५॰ सफलता पाने का मन्त्र
“प्रभु प्रसन्न मन सकुच तजि जो जेहि आयसु देव।
सो सिर धरि धरि करिहि सबु मिटिहि अनट अवरेब।।”

विधि- प्रतिदिन इस मन्त्र के १००८ पाठ करने चाहियें। इस मन्त्र के प्रभाव से सभी कार्यों में अपुर्व सफलता मिलती है।

६॰ रामजी की पूजा अर्चना का मन्त्र
“अब नाथ करि करुना, बिलोकहु देहु जो बर मागऊँ।
जेहिं जोनि जन्मौं कर्म, बस तहँ रामपद अनुरागऊँ।।”

विधि- प्रतिदिन मात्र ७ बार पाठ करने मात्र से ही लाभ मिलता है।
लाभ- इस मन्त्र से जन्म-जन्मान्तर में श्रीराम की पूजा-अर्चना का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

७॰ मन की शांति के लिये राम मन्त्र
“राम राम कहि राम कहि। राम राम कहि राम।।”

विधि- जिस आसन में सुगमता से बैठ सकते हैं, बैठ कर ध्यान प्रभु श्रीराम में केन्द्रित कर यथाशक्ति अधिक-से-अधिक जप करें। इस प्रयोग को २१ दिन तक करते रहें।
लाभ- मन को शांति मिलती है।

८॰ पापों के क्षय के लिये मन्त्र
“मोहि समान को पापनिवासू।।”

विधि- रुद्राक्ष की माला पर प्रतिदिन १००० बार ४० दिन तक जप करें तथा अपने नाते-रिश्तेदारों से कुछ सिक्के भिक्षा के रुप में प्राप्त करके गुरुवार के दिन विष्णुजी के मन्दिर में चढ़ा दें।
लाभ- मन्त्र प्रयोग से समस्त पापों का क्षय हो जाता है।

९॰ श्रीराम प्रसन्नता का मन्त्र
“अरथ न धरम न काम रुचि, गति न चहउँ निरबान।
जनम जनम रति राम पद यह बरदान न आन।।”

विधि- इस मन्त्र को यथाशक्ति अधिक-से-अधिक संख्या में ४० दिन तक जप करते रहें और प्रतिदिन प्रभु श्रीराम की प्रतिमा के सन्मुख भी सात बार जप अवश्य करें।
लाभ- जन्म-जन्मान्तर तक श्रीरामजी की पूजा का स्मरण रहता है और प्रभुश्रीराम प्रसन्न होते हैं।

१०॰ संकट नाशन मन्त्र
“दीन दयाल बिरिदु सम्भारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”

विधि- लाल चन्दन की माला पर २१ दिन तक निरन्तर १०००० बार जप करें।
लाभ- विकट-से-विकट संकट भी प्रभु श्रीराम की कृपा से दूर हो जाते हैं।

११॰ विघ्ननाशक गणेश मन्त्र
“जो सुमिरत सिधि होइ, गननायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोई बुद्धिरासी सुभ गुन सदन।।”

विधि- गणेशजी को सिन्दूर का चोला चढ़ायें और प्रतिदिन लाल चन्दन की माला से प्रातःकाल १०८० (१० माला) इस मन्त्र का जाप ४० दिन तक करते रहें।
लाभ- सभी विघ्नों का अन्त होकर गणेशजी का अनुग्रह प्राप्त होता है।,

सुंदर काण्ड के आरंभिक श्लोकों में तुलसी ने स्पष्ट शब्दों में हनुमान जी के , उन गुणों का उल्लेख किया है जिन के कारण वह एक साधारण कपि से इतने पूजनीय हो गये.!!!۞!!!


अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजबनकृशानुम ग्यानिनामअग्रगण्यम
सकल गुण निधानं वानारानामधीशं
रघुपति प्रिय भक्तं वातजातं नमामि !!!۞!!!

तुलसी ने कहा "अतुलित बल के धाम, स्वर्ण के समान कान्तियुक्त कायावाले , दैत्यों के संहारक (दैत्य वन के लिए दावानल के समान विध्वंसक ), ज्ञानियों में सर्वोपरि , सभी श्रेठ गुणों से युक्त समस्त वानर समुदाय के अधीक्षक और श्री रघुनाथ जी के अतिशय प्रिय भक्त महावीर हनुमान को मैं प्रणाम करता हूँ.!!!۞!!!

श्री हनुमान जी जितने कठोर हैं उससे ज्यादा दयालु भी हैं। कठोर आसुरी प्रवृत्तियों के लिए हैं और दयालु भक्तों के लिए हैं। हनुमान जी का नाम सुनते ही आसुरी प्रवृत्तियों की घिग्गी बंध् जाती है। राहु, केतु, शनि और अमंगलकारी ग्रहों की भी यही स्थिति है। हनुमान जी के सेवकों से ये सब दूरी बनाकर चलते हैं। लेकिन हनुमान जी की ऐसी कृपा उसी पर होती है जो छल, कपट, प्रपंच, ईष्या से दूर रहता है।यह स्थिति भी तब होती है जब निष्काम भाव से मानव स्वयं को उनको अर्पण कर कर्ता व कारक उसी को मान लेता है।

आनन्द रामायण में उल्लिखित अष्ट चिरजीवियों अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय) में हनुमान भी सम्मिलित हैं। भगवान् श्रीराम से उन्हें चिरंजीवित्व व कल्पान्त में सायुज्य मुक्ति का वर मिला !!!۞!!! है- मारुते त्वं चिरंजीव ममाज्ञां मा मृषा कृथा। एवम् कल्पान्ते मम् सायुज्य प्राप्स्यसे नात्र संशय: ।!!!۞!!! ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता !!!۞!!! !! हरि अनंत !!!!!!

उनका एक नाम तो हनुमान है ही, दूसरा अंजनी सूनु, तीसरा वायुपुत्र, चौथा महाबल, पांचवां रामेष्ट (राम जी के प्रिय), छठा फाल्गुनसख (अर्जुन के मित्र), सातवां पिंगाक्ष (भूरे नेत्र वाले) आठवां अमितविक्रम, नौवां उदधिक्रमण (समुद्र को लांघने वाले), दसवां सीताशोकविनाशन (सीताजी के शोक को नाश करने वाले), ग्यारहवां लक्ष्मणप्राणदाता (लक्ष्मण को संजीवनी ) और बारहवां नाम है- दशग्रीवदर्पहा (रावण के घमंड को चूर करने वाले) !!!۞!!!

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