मौनी अमावस्या के दिन व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता है इसलिए इसे योग पर आधारित व्रत भी कहते हैं। मौन का अर्थ समझा जाता है कि चुप रहना या नहीं बोलना। किंतु मौन का सही अर्थ होता है - वाणी का संयम के साथ उपयोग, आवश्यकता अनुसार बोलना, झूठ, कटु बोल न बोलना । इस प्रकार वाणी का संयम के साथ उपयोग करने की प्रवृत्ति को मौन कहते है। किसी भी व्यक्ति के लिए मौन रखना आसान नहीं होता। यदि मानव मन पर संयम न हो तो व्यक्ति असफलता और अवनति की ओर जाता है, इसलिए मानव मन पर नियन्त्रण करने का सबसे उचित तरीका है- मौन।
शास्त्रों में भी वर्णित है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन ही मन में भगवान का नाम लेने से मिलता है।
मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। चूंकि चन्द्रमा को मन का स्वामी माना गया है और अमावस्या को चन्द्रदर्शन नहीं होते हैं। जिससे इस दिन मन:स्थिति कमजोर होती है। अत: मौन व्रत कर मन को संयम में रखते हुए दान-पुण्य का विधान बनाया गया है।
Wednesday, February 2, 2011
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