माघ मास की अमावस्या को माघी तथा मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। इस पवित्र तिथि पर मौन रहकर अथवा मुनियों के समान आचरणपूर्वक स्नान-दान करने तथा व्रत रखने का विशेष महत्व है।
इस दिन यदि सोमवार हो तो इसका महत्व और अधिक हो जाता है। मौनी अमावस्या को यदि रविवार, व्यतीपात योग व श्रवण नक्षत्र का योग हो तो अर्धोदय योग होता है। इस योग में सभी स्थानों का जल गंगा के समान हो जाता है और सभी ब्राह्मण ब्रह्मसंनिभ शुद्धात्मा हो जाते हैं।
मान्यताओं के अनुसार मौनी अमावस्या पर त्रिवेणी अथवा गंगातट पर स्नान-दान करने की अपार महिमा है। मौनी अमावस्या के दिन नित्यकर्म से निवृत्त हो स्नान करके तिल, तिल के लड्डू, आंवला तथा कंबल आदि का दान करना चाहिए। साथ ही साधु, महात्मा तथा ब्राह्मणों के सेवन के लिए अग्नि प्रज्वलित करना चाहिए-
तैलमामलकाश्चैव तीर्थे देयास्तु नित्यश:।
तत: प्रज्वालयेद्वह्निं सेवनार्थे द्विजन्मनाम्।।
कंबलाजिनरत्नानि वासांसि विविधानि च।
चोलकानि च देयानि प्रच्छादपटास्तथा।।
इस दिन गुड़ में काला तिल मिलाकर लड्डू बनाना चाहिए तथा उसे लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मणों को देना चाहिए। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए। स्नान-दान के अलावा इस दिन पितृ-श्राद्धादि करने का भी विधान है ा माघ मास में स्नान, दान, उपवास व भगवान माधव की पूजा अत्यंत फलदायी बताई गई है। इस विषय में महाभारत के अनुशासन पर्व में इस प्रकार वर्णन है-
दशतीर्थसहस्त्राणि तिस्त्र: कोट्यस्तथा परा:।।
समागच्छन्ति माघ्यां तु प्रयागे भरतर्षभ।
माघमासं प्रयागे तु नियत: संशितव्रत:।।
स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ निर्मल: स्वर्गमाप्नुयात्।
(महाभारत. अनु. 25/36-३८)
अर्थात हे भरतश्रेष्ठ। माघमास की अमावस्या को प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है, जो नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघमास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।
माघमासे तिलान् यस्तु ब्राह्मणेभ्य: प्रयच्छति।
सर्वसत्तवसमाकीर्णं नरकं स न पश्यति।।
(महा. अनु. ६६/८)
अर्थात जो माघमास में ब्राह्मणों को तिल दान करता है, वह समस्त जंतुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता।
महाभारत के अलावा मत्स्यपुराण में भी माघ मास की महिमा का वर्णन है। उसके अनुसार-
पुराणं ब्रह्मवैवर्तं यो दद्यान्माघमासि च।
पौर्णमास्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।।
मत्स्यपुराण( ५३/३५)
अर्थात माघमास में पूर्णिमा को जो व्यक्ति ब्रह्मवैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है हिंदू धर्म में माघ मास को बहुत ही पवित्र माना गया है। मत्स्यपुराण, महाभारत आदि धर्म ग्रंथों में मास मास का महत्व विस्तार से बताया गया है। इस मास में भगवान माधव की पूजा करने तथा नदी स्नान करने से मनुष्य स्वर्गलोक में स्थान पाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार -
स्वर्गलोके चिरं वासो येषां मनसि वर्तते।
यत्र क्वापि जले तैस्तु स्नातव्यं मृगभास्करे।।
अर्थात जिन मनुष्यों को चिरकाल तक स्वर्गलोक में रहने की इच्छा हो, उन्हें माघमास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर पवित्र नदी में प्रात:काल स्नान करना चाहिए।
माघं तु नियतो मासमेकभक्तेन य: क्षिपेत्।
श्रीमत्कुले ज्ञातिमध्ये स महत्त्वं प्रपद्यते।।
(महा. अनु. 106/5)
अर्थात जो माघमास में नियमपूर्वक एक समय भोजन करता है, वह धनवान कुल में जन्म लेकर अपने कुटुम्बीजनों में महत्व को प्राप्त होता है।
अहोरात्रेण द्वादश्यां माघमासे तु माधवम्।
राजसूयमवाप्रोति कुलं चैव समुद्धरेत्।।
(महा. अनु. 109/5)
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