कुबेर धन के अधिपति यानि धन के राजा हैं। पृथ्वीलोक की समस्त धन संपदा का एकमात्र उन्हैं ही अध्यक्ष बनाया गया है। इतना ही नहीं कुबेर भगवान शिव के परमप्रिय सेवक भी हैं। धन के अधिपति होने के कारण इन्हैं मंत्र साधना द्वारा प्रसन्न करने का विधान बताया गया है। अन्य सभी मंत्रों से भिन्न, कुबेर मंत्र को दक्षिण की और मुख करके साधने की परंपरा है।
अति दुर्लभ कुबेर मंत्र इस प्रकार है- मंत्र- ऊँ श्रीं, ऊँ ह्रीं श्रीं, ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:।
विनियोग- अस्य श्री कुबेर मंत्रस्य विश्वामित्र ऋषि:बृहती छन्द: शिवमित्र धनेश्वरो देवता समाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोग:
हवन- तिलों का दशांस हवन करने से प्रयोग सांग होता है। यह प्रयोग शिव मंदिर में करना उत्तम रहता है। यदि यह प्रयोगबिल्वपत्र वृक्ष की जड़ो के समीप बैठ कर हो सके तो अधिक उत्तम होगा। प्रयोग सूर्योदय के पूर्व सम्पन्न हो सके तो अति उत्तम होगा।.................
हमें दैनिक जीवन में हर कार्य को करने के लिए शक्ति यानि ऊर्जा की आवश्यकता होती है। शक्ति तन के लिए व मन के लिए। इसके अलावा यदि आप अपने जीवन में कुछ पाना चाहते हैं तो इसके लिए भी आपको कार्य सिद्धि की शक्ति चाहिए होती है। यानि शक्ति हर काम के लिए जरुरी है। यहां शक्ति से अभिप्राय ताकत से नहीं है। तन, मन और दृढ़इच्छा का मिलाजुला रूप ही शक्ति है। तन, मन तथा किसी विशेष कार्य सिद्धि के लिए शक्ति प्राप्त करने के लिए नीच लिखे मंत्र का जप करना चाहिए। यह दुर्गासप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का ग्यारहवां मंत्र है।
मंत्र
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोस्तु ते।
जप विधि-
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।
सुबह जल्दी उठकर साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले माता दुर्गा की पूजा करें। इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर लाल चंदन के मोतियों की माला से इस मंत्र का जप करें। इस मंत्र की प्रतिदिन 5 माला जप करने से तन, मन तथा कार्यों को सिद्ध करने की शक्ति प्राप्त होती है। यदि जप का समय, स्थान, आसन, तथा माला एक ही हो तो यह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है
धन पाने की इच्छा रखते हैं तो दुर्गासप्तशती के चौथे अध्याय के 17 वे श्लोक का नित्य जप करने से आपकी मनोकामना शीघ्र ही पूरी हो जाएगी।
मंत्र--
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।
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