भगवान शिव की पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। ऐसा पुराणों में वर्णित है। शिवमहापुराण में विभिन्न रसों से शिव की पूजा का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है, जिससे साधक को कई रोगों से छुटकार मिल जाता है वहीं मन चाहे फल की प्राप्ति भी होती है। यह इस प्रकार है-
ज्वर(बुखार) से पीडि़त होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्रताशीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है। उत्तम भस्म धारण कर दिव्य द्रव्यों से शिव की पूजा करने तथा सहस्त्रनाम मंत्रों से घी की धारा चढ़ाने से वंश की वृद्धि होती है। यदि दस हजार मंत्रों से शिव की पूजा की जाए तो प्रमेह रोग समाप्त हो जाता है।
नपुंसक व्यक्ति अगर घी से शिव की पूजा करे व ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा प्राजापत्य व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान हो जाता है। बुद्धि जड़ हो जाने पर शर्करामिश्रित दूध चढ़ाने से साधक बृहस्पति के समान बुद्धिमान हो जाता है। यदि किसी कार्य में मन न लगे तो भी शिव को दूध चढ़ाना चाहिए। सुगंधित तेल से शिव की पूजा करने पर भोगों में वृद्धि होती है। भगवान शिव पर ईख(गन्ना) के रस की धारा चढ़ाई जाए तो सभी आनन्दों की प्राप्ति होती है। शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। मधु(शहद) की धारा शिव पर चढ़ाने से राजयक्ष्मा रोग दूर हो जाता है।
यह सभी रसों की धाराएं मृत्युंजय मंत्र से चढ़ानी चाहिए, उसमें भी उक्त मंत्र का दस हजार जप करना चाहिए तथा ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। तभी मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
Wednesday, February 2, 2011
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