ज्योतिष विज्ञान अनुसार छायाग्रहों यानि दिखाई न देने वाले राहू और केतु के कारण कुण्डली में बने कालसर्प योग के शुभ होने पर जीवन में सुख मिलता है, किंतु इसके बुरे असर से व्यक्ति जीवन भर कठिनाईयों से जूझता रहता है। दूसरी तरह कालसर्प दोष के शमन के लिए बताए गए समय और धन खर्च करने वाले उपाय हर व्यक्ति वहन नहीं कर सकता। किंतु सनातन धर्म में नित्य देव आराधना संकट मुक्ति की सबसे उचित राह मानी जाती है। इसलिए यहां बताया जा रहा है
1)कालसर्प दोष से बचाव के लिए ही किन-किन देवताओं की उपासना संकटमोचक होती है। कालसर्प योग के दोष से मुक्ति के लिए नागों के देवता भगवान शिव की भक्ति और आराधना सबसे श्रेष्ठ उपाय है। 2)-पुराणों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालिय नाग का मद चूर किया था। इसलिए इस दोष शांति के लिए भगवान श्री कृष्ण की आराधना भी श्रेष्ठ है।3)- प्रथम पूज्य शिव पुत्र श्री गणेश को विघ्रहर्ता कहा जाता है। इसलिए कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए गणेश पूजा भी करनी चाहिए। 4)- शिव अवतार श्री हनुमान जी राहु और केतु के कष्टों से छुटकारा दिलाते हैं। इसलिए हनुमान उपासना भी बहुत शुभदायी है।5)- शिव के ही अंश बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है। 6)- कालसर्प योग बनाने वाले राहु और केतु के मंत्र का जप भी करना चाहिए।===
कालसर्प दोष के बुरे प्रभाव जीवन में तरह-तरह से बाधा पैदा कर सकते हैं। पूरी तरह से मेहनत करने पर भी अंतिम समय में सफलता से दूर हो सकते हैं। कालसर्प दोष शांति के लिए बड़े धार्मिक उपाय के लिए समय या धन का अभाव होने पर यहां कालसर्प दोष शांति के कुछ ऐसे छोटे किंतु असरदार उपाय बताए जा रहे हैं, जो निश्चित रुप से आपके जीवन पर होने वाले बुरे असर को रोकते हैं - 7)- श्री हनुमान चालीसा का पाठ नियमित रुप से करें। यह जीवन में हर बाधा दूर करने का सटीक उपाय है। 8)- हर सोमवार खासतौर पर सावन माह के सोमवार को शिवलिंग का जल या पंचामृत से अभिषेक करें।9)- नाग पंचमी के दिन शिव की पूजा कर चांदी के नाग का जोड़ा चढ़ाएं और एक जोड़ा चांदी का सर्प बहते जल में बहाएं।
10)- शनिवार शाम को सिर से 7 बार नारियल उतारकर बहते जल में बहाएं। 11)- अपने भार के बराबर कोयला तीन भाग में बांट लें और किसी भी तीन शनिवार को लगातार जल में छोड़ें। 12)- कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराया जाना चाहिए और उनकी सलाह से राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए।====
सावन माह की नागपंचमी पर कालसर्प दोष भंग करने के लिए अनेक लोगों द्वारा विशेष पूजा कराई जाती है। यह कालसर्प पूजा मन में भय, शंका और संशय के साथ अधिक कराई जाती है। क्योंकि कालसर्प योग को लेकर यह धारणा बन चुकी है कि यह दु:ख और पीड़ा देने वाला ही योग है। जबकि इस मान्यता को लेकर ज्योतिष के जानकार भी एकमत नहीं है। हालांकि यह बात व्यावहारिक रुप से सच पाई गई है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु के बीच सारे ग्रहों के आने से कालसर्प योग बन जाता हैं। उस व्यक्ति का जीवन असाधारण होता है। उसके जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे जाते है।वास्तव में कालसर्प योग के असर से कभी व्यक्ति को जीवन में अनेक कष्टों से दो-चार होना पड़ सकता है तो कभी यही योग ऊंचें पद, सम्मान और सफलता का कारण भी बन जाता है। इस तरह माना जा सकता है कि कालसर्प योग हमेशा पीड़ा देने वाला नहीं होता है।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार कालसर्प योग का शुभ-अशुभ फल राशियों के स्वभाव और तत्व पर पर निर्भर करता है। स्वभाव के आधार पर राशियां चर, स्थिर और दोहरे स्वभाव की होती है। मेष, कर्क, तुला और मकर चर, वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ स्थिर और मिथुन, कन्या, धनु और मीन द्विस्वभाव की राशि मानी जाती है। इसी प्रकार हर राशि जल, वायु या अग्रि आदि तत्व प्रधान होती है। जैसे मेष, धनु और सिंह राशि अग्रि तत्व वाली है।राहु राशि के तत्वों को बढ़ाने वाला और केतु कम करता है। कुण्डली में राहु से सातवें भाव में केतु बैठा होता है। ज्योतिष विज्ञान के नियमों में राहु अग्रि तत्व की राशि में होने पर केतु वायु तत्व की राशि में होता है। इसी प्रकार राहु अगर चर राशि में हो तो केतु भी चर राशि में होता है। अत: कुण्डली में राहु और केतु की स्थिति और अलग-अलग ग्रहों के साथ बनने वाले अच्छे बुरे योग जीवन के सुख-दु:ख नियत करते हैं।इस तरह ज्योतिष शास्त्र के आधार पर यह बात साफ है कि कालसर्प योग जिंदगी पर असामान्य प्रभाव डालता है। परंतु यह असर हमेशा के लिए नहीं होता है। इस योग के बुरे प्रभाव कम करने के लिए ज्योतिष और कर्मकांड के उपाय कारगर हो सकते हैं।व्यावहारिक जीवन की नजर से कालसर्प योग व्यक्ति के चरित्र, आचरण, सहनशीलता की परख का काल भी होता है। यह समय संयम के साथ गुजारने पर जीवन और व्यक्तित्व निखर सकता है।====
सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी (इस वर्ष १४ अगस्त) नाग पूजा का विशेष काल है। यह घड़ी ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अहम मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के देवता शेषनाग हैं। इसलिए जन्म कुण्डली में राहु और केतु की विशेष स्थिति से बनने वाले कालसर्प योग की शांति के लिए यह दिन बहुत शुभ फल देने वाला माना जाता है। कालसर्प योग का बुरा प्रभाव जीवन में अनेक तरह से पीड़ा और हर कार्य में बाधा पहुंचाता है। इसलिए अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में कालसर्प दोष हो तो इसकी शांति के लिए नागपंचमी का दिन नहीं चूकना चाहिए। नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष शांति के लिए नाग और शिव की विशेष पूजा और उपासना जीवन में आ रही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों और बाधाओं को दूर कर सुखी और शांत जीवन की राह आसान बनाती है। नागपंचमी पर्व पर कालसर्प योग, उसके अलग-अलग रुप, फल और दूर करने के उपायों पर विशेष लेख पढ़े इसी साईट पर आने वाले दिनों में -
2 comments:
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