Thursday, February 17, 2011

वेद.....,गीता में श्री कृष्ण ने कहा है.......,युगों की गणित...............

संकीर्तन तो बहुत हैं, थोड़ा दीन लिखाय।
तन मन प्रेम लगाय कै, करिये हरि दरसाय। !!!۞!!!

श्री गौराङ्ग महाप्रभु ने ओंकार ही को महावाक्य कहा है। और तीन वेद प्रधान माना
है। सामवेद ऋग्वेद और ययुर्वेद। ऊँ में पांच अक्षर हैं।

आ उ म। आ से सामवेद, उ से ऋग वेद और म से यजुर्वेद। इन्हीं तीन वेदों के
अंश से अथर्वण वेद बना है। और चारों के अंश से आयुर्वेद हुआ है। ऊँ के ऊपर
जो रेफ़ बिन्दु है वह निर्गुण नाम राम जानकी, कृष्ण राधा बिष्णु रमा का है
और उसी में पालन, प्रलय, उत्पति, सब सुर मुनि, नर और सब जीवों का बास है।
इस नाम को ब्रह्मा, शिव, शेष, लोमश इत्यादि सभी जपते हैं। विष्णु जी आप ही
आप को जपते हैं। और जगत का पालन करते हैं। यह बात बहुत ही ऊँची हैं। अपने
आप को तो जपना ही है। दूसरा कोई नहीं है। अपने स्वरूप को पहिचान कर स्वयं
आप ही आप हो जाता है !!!۞!!!......

गीता में श्री कृष्ण ने कहा है-

नैनं छिदंति शस्त्राणि,नैनं दहति पावकः ,
न चैनं क्लेदयांत्यापोह,न शोशियती मारुतः ......................

यानि आत्मा अमर है।

तो प्रश्न उठता है कि इन आत्माओं का स्वरुप क्या होता है, क्या यह फिर किसी नए शरीर में आती है, कर्म काहिसाब चुकाने के लिए क्या आत्मा नए-नए रूपों में जन्म लेती रहती है? हाँ- तो यही है पुनर्जन्म!...........
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥ ॐ ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥१॥
व्‍याख्‍या :-
अखिल विश्‍व मे जो कुछ भी गतिशील अर्थात चर अचर पदार्थ है, उन सब मे
ईश्‍वर अपनी गतिशीलता के साथ व्‍याप्‍त है उस ईश्‍वर से सम्‍पन्‍न होते
हुये से तुम त्‍याग भावना पूर्वक भोग करो। आसक्‍त मत हो कि धन अथवा भोग्‍य
पदार्थ किसके है अथार्थ किसी के भी नही है ? अत: किसी अन्‍य के धन का लोभ
मत करो क्‍योकि सभी वस्‍तुऐ ईश्‍वर की है। तुम्‍हारा क्‍या है क्‍या लाये
थे और क्‍या ले जाओगे।


सामान्य धरातल पर मुझे विश्वास है, आत्मा नए शारीरिक परिधान में पुनः हमारे बीच आती है। अगर सतयुग,द्वापरयुग सत्य है तो यह भी सत्य है कि आत्मा का नाश नही, वह जन्म लेती है। राम ने कृष्ण के रूप में, कौशल्याने यशोदा, कैकेयी ने देवकी, सीता ने राधा के रूप में क्रमशः जन्म लिया...कहानी यही दर्शाती है, तो इन तथ्यों के आधार पर मेरा भी विश्वास इसी में है।..............................

सिन्धु घाटी में सिन्धु नदी के किनारे भगवान वेदव्यास ने शास्त्रों का अनुवाद किया था।
अपने जब 432000 ...वर्ष पूरे होते हैं
तब "कलियुग" पूरा होता है।

कलयुग का दुगुना --> 864000 वर्ष का "द्वापर" युग होता है ।
कलयुग का तीन गुना -->1296000 वर्ष का "त्रेतायुग" होता है ।
और कलयुग का चार गुना "सतयुग" -->1728000 वर्ष का होता है ।
कुल मिलाकर 4320000 वर्ष बीतते हैं तब एक चतुर्युग पूरा होता है ।

ऐसी 71 चतुर्युगी बीतती है तब अर्तार्थ 306720000 वर्ष का एक मन्वन्तर होता है।ऐसे चौदह मन्वन्तर बीतते हैं तब ब्रह्माजी का एक दिन होता है।

खूब ध्यान देना इस बात पर।ब्रह्माजी के केवल एक दिन में ऐसे चौदह इन्द्र बदल जाते हैं।
ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है,
जिसे चरण कहते हैं:--4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष)
सत युग3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष)
त्रेता युग2 चरण (864,000 सौर वर्ष)
द्वापर युग1 चरण (432,000 सौर वर्ष)

कलि युगइस समय ब्रह्माजी की उम्र 50 वर्ष हो गई है।
51वें वर्ष का प्रथम दिन चल रहा है।
प्रथम दिन का भी आधा हिस्सा समाप्त हुआ है।
अभी यह सातवाँ मन्वन्तर चल रहा है।

(चौदह मन्वन्तर = ब्रह्माजी का एक दिन )
इसलिए जो लोग कर्मकाण्ड करते हैं वे संकल्प करते समय बोलते हैं-
"सप्तम मन्वन्तरे जम्बू द्वीपे उत्तराखण्डे भारत देशे कलियुगे प्रथम चरणे....' आदि आदि...।
ब्रह्मा जी की आयु 100 वर्ष की होती है != 1400 मन्वन्तर !!

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